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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
६६४ - सराग सम्यग्दर्शन के दस प्रकार
जिस जीव के मोहनीय कर्म उपशान्त या क्षीण नहीं हुआ है उसकी तत्त्वार्थ श्रद्धा को सराग सम्यग्दर्शन कहते हैं । इस के निसर्ग रुचि से लेकर धर्म रुचि तक ऊपर लिखे अनुसार दस भेद हैं । ( ठाथांग, सूत्र ७५१ ) ( पनवा पद १ ) ६६५ - मिथ्यात्व दस
जो बात जैसी हो उसे वैसा न मानना या विपरीत मानना मिध्यात्व है। इसके दस भेद हैं
(१) अधर्म को धर्म समझना ।
( २ ) वास्तविक धर्म को अधर्म समझना ।
( ३ ) संसार के मार्ग को मोक्ष का मार्ग समझना । (४) मोक्ष के मार्ग को संसार का मार्ग समझना । (५) अजीव को जीव समझना । (६) जीव को अजीव समझना । (७) कुसाधु को सुसाधु समझना । (८) सुसाधु को कुसाधु समझना ।
( ६ ) जो व्यक्ति राग द्वेष रूप संसार से मुक्त नहीं हुआ है उसे मुक्त समझना ।
(१०) जो महापुरुष संसार से मुक्त हो चुका है, उसे संसार में लिप्त समझना । (ठाणांग, सूत्र ७३४)
६६६ - दस प्रकार का शस्त्र
जिससे प्राणियों की हिंसा हो उसे शस्त्र कहते हैं । वे शस्त्र दस प्रकार के बताए गए हैं। यह द्रव्य शस्त्र और भाव शत्र के भेद से दो प्रकार का है । पहिले द्रव्य शस्त्र के भेद बतलाये जाते हैं। (१) अग्नि- अपनी जाति से भिन्न विजातीय अभि की अपेक्षा