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________________ भी जैन सिद्धान्त बोख संग्रह कर सकता है।गच्छ में रहने का श्रेष्ठ फल,गच्छ,गणि और प्राचार्य का खरूप गीतार्थ साधु के गुण वर्णन, गच्छ का आचार आदि विषयों का वर्णन भी इस पइण्णा में विस्तार पूर्वक किया गया है। (८) गणिविज्जा पइण्णा- इसमें ८२ गाथाएं हैं । तिथि, नक्षत्र आदि के शुभाशुभ से शकुनों का विचार विस्तार पूर्वक बतलाया गया है। किन तिथियों में किधर गमन करने से किस अर्थ की प्राप्ति होती है इसका भी विचार किया गया है। (8) देविंदयव पइण्णा- इसमें ३०७ गाथाएं हैं। देवेन्द्रों द्वारा की गई तीर्थङ्करों की स्तुति, देवेन्द्रों की गिनती, भवनपतियों के इन्द्र चमरेन्द्र आदि की स्थिति, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी, और वैमानिक देवों के भवनों का वर्णन, उनके इन्द्र की स्थिति, अल्प बहुख,सिद्धों के सुख आदि का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। (१०) मरण समाहि- इस में ६६३ गाथाएं हैं।समाधिपूर्वक मरण कैसा होता है और वह किस प्रकार प्राप्त होता है यह इसमें बतलाया गया है। आराधना, आराधक अनाराधक का स्वरूप, शल्योद्धार, आलोचना, ज्ञानादि में उद्यम, ज्ञान की महिमा, संलेरखना, संलेखना की विधि, राग द्वेष का निग्रह, प्रमाद कात्याग, ममत्व एवं भाव शल्य कात्याग, महाव्रतों की रक्षा, पण्डित मरण, उत्तम अर्थ की प्राप्ति,जिनवचनों की महिमा, जीव का दूसरीगति में गमन, पूर्वभव के दुःखों का स्मरण, जिनधर्म से विचलित न होने वाले गजमुकुमाल, चिलातिपुत्र, धनाजी, शालिभद्र,पाँच पाण्डव आदि के दृष्टान्त, परिषह, उपसर्ग का सहन, पूर्वभव का चिन्तन, जीव की नित्यता, अनित्यता, एकत्व आदि भावनाएं इत्यादि विषयों का वर्णन इस पइण्णा में विस्तार के साथ किया गया है। अन्त में मोक्ष के सुखों का वर्णन और उनकी अपूर्वता बताई गई है। (पइराणा दस)
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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