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श्री सेठिया जैन प्रन्धमाला
भक्त परिज्ञा, इंगिनी, पादपोपगमन आदि का स्वरूप बतलाया गया है । इसके अतिरिक्त नमस्कार, मिथ्यास त्याग, सम्यक्स, भक्ति, दया, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, नियाणा, इन्द्रिय दमन, कषाय, कषायों का विजय, वेदना इत्यादि विषयों का वर्णन भी इस पइण्णा में है। (५) तन्दुलवेयालीय- इस में १३८ गाथाएं हैं। इनमें मुख्यतः गर्भ में रहे हुए जीव की दशा, आहार आदि का वर्णन किया गया है। इसके सिवाय जीव की गर्भ में उत्पत्ति किस प्रकार होती है ? वह किस प्रकार आहार करता है ? उसमें मातृअङ्ग
और पितृअङ्ग कौन कौन से हैं ? गर्भ की अवस्था, शरीर की उत्पत्ति का कारण मनुष्य की दस दशाएं, जोड़ा, संहनन, संस्थान, प्रस्थक,आढक आदि का परिमाण, काया का अशुचिपन स्त्री के शरीर का विशेष अशुचिपन, स्त्री के १३ नाम और उनकी ६३ उपमा आदि आदि विषय भी विस्तार के साथ वर्णित किये गये हैं। मरण के समय पुरुष को स्त्री, पुत्र, मित्र
आदि सभी छोड़ देते हैं, केवल धर्म ही एक ऐसा परम मित्र है जो जीव के साथ जाता है । धर्म ही शरण रूप है। इस लिए ऐसा यन करना चाहिए जिससे सब दुःखों से छुटकारा होकर मोक्ष की प्राप्ति हो जाय । (६) संथार पइण्णा- इसमें १२३ गाथाएं हैं, जिनमें मुख्य रूप से संथारे (मारणान्तिक शय्या) का वर्णन किया गया है। संथारे की महिमा,संधारा करने वाले का अनुमोदन, संथारे की अशुद्धि और विशुद्धि, संथारे में प्राझरत्याग, क्षमा याचना, ममख त्याग आदि का वर्णन भी इसी पइण्णा में है। .. (७) गच्छाचार पइण्णा- इसमें १३७ गाथाएं हैं। इनमें बतलाया गया है कि श्रेष्ठ गच्छ में रह कर मुनि आत्मकल्याण