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श्री सेठिया जैन मन्थमाला
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वर्णन हो अथवा तथ्य यानी सत्य पदार्थ का वर्णन जिसमें हो उसे तत्त्ववाद या तथ्यवाद कहते हैं। (५) सम्यग्वाद- वस्तुओं के अविपरीत अर्थात् सत्य स्वरूप को बतलाने वाला वाद सम्यगवाद कहलाता है। (६) धर्मवाद- वस्तुओं के पर्यायों को धर्म कहते हैं अथवा चारित्र को भी धर्म कहते हैं । इनका जिसमें वर्णन हो उसे धर्मवाद कहते हैं। (७) भाषा विजय वाद-- सत्या, असत्या आदि भाषाओं का निर्णय करने वाले या भाषा की समृद्धि जिसमें बतलाई गई हो उसे भाषा विजय वाद कहते हैं। (८) पूर्वगत वाद- उत्पाद आदि चौदह पूर्वो का स्वरूप बतलाने वाला वाद पूर्वगत वाद कहलाता है। (६) अनुयोगगतं वाद- अनुयोग दो तरह का है। प्रथमानुयोग और गण्डिकानुयोग।
तीर्थङ्करों के पूर्व भव आदि का व्याख्यान जिस ग्रन्थ में किया गया हो उसे प्रथमानुयोग कहते हैं। भरत चक्रवर्ती आदि वंशजों के मोक्ष गमन का और अनुत्तर विमान आदि का वर्णन जिस ग्रन्थ में हो उसे गण्डिकानुयोग कहते हैं।
पूर्वगत वाद और अनुयोग गत वाद ये दोनों वाद दृष्टिवाद के ही अंश हैं किन्तु यहाँ पर अवयव में समुदाय का उपचार करके इन दोनों को दृष्टि वाद ही कहा गया है। (१०) सर्व प्राण भूत जीव सत्त्व सुखावह वाद- द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय प्राण कहलाते हैं । वृक्ष आदि वनस्पति को भूत कहते हैं । पञ्चेन्द्रिय प्राणी जीव कहलाते हैं और पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय और वायुकाय को सत्त्व कहते हैं। इन सब प्राणियों को सुख का देने वाला वाद सर्व प्राण भूत