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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
यिक मादि का स्वरूप दूसरे भागबोलनं० ४७६ में दिया गया है। (७) वर्ग- जिस के द्वारा राग द्वेष आदि दोषों का वर्जनत्याग किया जाय। (८) न्याय- मोक्ष रूप परम पुरुषार्थ की सिद्धि का श्रेष्ठ उपाय होने से न्याय है अथवा जीव और कर्म के अवास्तविक सम्बन्ध को दूर करके उन दोनों का विवेक कराने वाला होने से न्याय है। (B) आराधना- मोक्ष की आराधना का कारण होने से इसका नाम आराधना है। (१०) मार्ग- मोक्ष रूपी नगर में पहुँचने का रास्ता होने से इसका नाम मार्ग है।
( विशेषावश्यक भाष्य गा० ८७२-८७६ ) (अनुयोग द्वार मावश्यक प्रकरण ) ६८८- दृष्टिवाद के दस नाम
जिसमें भिन्न भिन्न दर्शनों का स्वरूप बताया गया हो उसे दृष्टिवाद कहते हैं। इसके दस नाम हैं। वे ये है(१) दृष्टिवाद। (२) हेतुवाद- इष्ट अर्थ को सिद्ध करने वाला हेतु कहलाता है जैसे यह पर्वत अग्नि वाला है, क्योंकि इसमें धुआँ दिखाई देता है। यहाँ धूम हेतु हमारे इष्ट अर्थ यानी पर्वत में अग्नि साध्य को सिद्ध करता है । इस प्रकार के हेतुओं का जिस में वर्णन हो उसे हेतुवाद कहते हैं, अथवा हेतु अनुमान का अङ्ग है अतः यहाँ उपचार से हेतु शब्द से अनुमान का ग्रहण करना चाहिए। अनुमान आदि का वर्णन जिसमें हो उसे हेतुवाद कहते हैं। (३) भूत वाद- भूत यानी सद्भूत पदार्थों का जिस में वर्णन किया गया हो उसे भूतवाद कहते हैं। (४) तथ्यवाद- (तत्त्व वाद) तत्व यानी वस्तुओं का जिसमें