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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
(१) कालाचार-शास्त्र में जिस समय जो सूत्र पढ़ने की आश है, उस समय उसे ही पढ़ना कालाचार है । (२)विनयाचार-ज्ञानदाता गुरु का विनय करना विनयाचार है। (३) बहुमानाचार- ज्ञानी और गुरु के प्रति हृदय में भक्ति और श्रद्धा के भाव रखना बहुमानाचार है। (४) उपधानाचार-शास्त्रों में जिस सूत्र को पढ़ने के लिए जो तप बताया गया है, उसको पढ़ते समय वही तप करना उपधानाचार है। (५) अनिवाचार- पढ़ाने वाले गुरु के नाम को नहीं छिपाना अर्थात् किसी से पढ़ कर 'मैं उससे नहीं पढ़ा' इस प्रकार मिथ्या भाषण नहीं करना अनिवाचार है। (६)व्यञ्जनाचार-सूत्र के अक्षरों का ठीक ठीक उच्चारण करना व्यञ्जनाचार है। जैसे 'धम्मो मंगलमुक्किटम् ' की जगह ' पुरणं मंगलमुकिहम् 'बोलना व्यञ्जनाचार नहीं है क्योंकि मूल पाठ में भेद हो जाने से अर्थ में भी भेद हो जाता है और अर्थ में भेद होने से क्रिया में भेद हो जाता है। क्रिया में फर्क पड़ने से निर्जरा नहीं होती और फिर मोन भी नहीं होता। अतः शुद्ध पाठ पर ध्यान देना आवश्यक है। (७) अर्थाचार- सूत्र का सत्य अर्थ करना अर्थाचार है। (८) तदुभयाचार- मूत्र और अर्थ दोनों को शुद्ध पढ़ना और समझना तदुभयाचार है।
(धर्मसंग्रह देशनाधिकार ) ५६६- दर्शनाचार आठ ___सत्य तत्त्व और अर्थों पर श्रद्धा करने को सम्यग्दर्शन कहते हैं । इस के चार अंग हैं- परमार्थ अर्थात् जीवादि पदार्थों का ठीक ठीक ज्ञान, परमार्थ को जानने वाले पुरुषों की सेवा, शिथिलाचारी और कुदर्शनी का त्याग तथा सम्यक्त्व अर्थात् सत्य पर दृढ श्रद्धान। सम्यग्दर्शन धारण करने वाले द्वारा आचरणीय (पालने योग्य) बातों को दर्शनाचार कहते हैं। दर्शनाचार आठ हैं