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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
भद्रोत्तर प्रतिमा तप
रामकृष्णा आर्या ने इस तप का सूत्रोक्त विधि से आराधन किया और अनेक प्रकार के तप करती हुई विचरने लगी। तत्पश्चात् रामकृष्णा आर्या ने अपने शरीर को तप के द्वारा अति दुर्बल हुआ जान एक मास की संलेखना की। अन्तिम समय में केवल ज्ञान, केवल दर्शन उपार्जन कर मोक्ष पद को प्राप्त किया। (B) प्रिय सेन कृष्णा रानी- कोणिक राजा की छोटी माता
और श्रेणिक राजा की नवी राणी का नाम प्रियसेनकृष्णा था । दीक्षा के पश्चात् वह अनेक प्रकार का तप करती हुई विचरने लगी । सती चन्दनबाला की आज्ञा लेकर उसने मुक्तावली तप किया। इसमें एक उपवास से शुरू करके पन्द्रह उपवास तक किये जाते हैं और बीच बीच में एक एक उपवास किया जाता है। मध्य में १६ उपवास करके फिर क्रमशः उतरते हुए एक उपवास तक किया जाता है। इसका नकशा ३४८ वें पृष्ठ पर दिया गया है।
इस प्रकार तप करती हुई प्रियसेन कृष्णा रानीने देखा कि अब मेरा शरीर तपस्या से अति दुर्बल हो गया है तब सती चन्दनबालासे आज्ञा लेकर एक मास की संलेखना की। केवलज्ञान, केवल दर्शन उपार्जन कर अन्त में मोक्ष पद प्राप्त किया।