________________
श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
SSEScotional
और स्वयमेव अपने हाथ से पंचमुष्टि लोच किया। लोच करके भगवान् के समीप आकर इस प्रकार कहने लगी कि हे भगवन् ! यह संसार जन्म जरा मृत्यु के दुःखों से व्याप्त हो रहा है। मैं इन दुःखों से भयभीत होकर आपकी शरण में आई हूँ। आप मुझे दीक्षा दो और धर्म सुनावो। तब श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने कालो रानी को स्वयमेव दीक्षादी, मुण्डित की और सब साध्वियों में ज्येष्ठ सती चन्दनवाला आर्या को शिष्यनीपने सौंप दी । तब सती चन्दनबाला आर्या ने उसको स्वीकार किया तथा सब प्रकार से इन्द्रियों का निग्रह करना, संयम में विशेष उद्यमवन्त होना ऐसीहित शिक्षादो। कालीआर्या ने सामायिक से लेकर ग्यारह अङ्ग का ज्ञान पढ़ा और अनेक प्रकार के तप करती हुई विचरने लगी।
एक समय काली आयो सती चन्दनबाला के पास आकर इस प्रकार कहने लगी कि अहो आर्याजी ! यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं रत्नावली तप करने की इच्छा करती हूँ। तब सती चन्दनवाला ने कहा कि जैसे तुम को सुख हो वैसा कार्य करो। तब काली आर्या ने रत्नावली तप अङ्गीकार किया। गले में पहनने का हार रबावली कहलाता है। उस रत्नावली हार के समान जो तप किया जाता है वह रत्नावली तप कहलाता हैं। जैसे रनावली हार ऊपर दोनों तरफ से सूक्ष्म (पतला) होता है। थोड़ा आगे बढ़ने पर दोनों तरफ फूल होते हैं। नीचे यानी मध्यभाग में हार पान के आकार होता है अर्थात मध्यभाग में बड़ी बड़ी मणियों से संयुक्त पान के आकार वाला होता है । इस रत्नावली हार के समान जो तप किया जाय वह रत्नावली तप कहलाता है, अर्थात् तप में किये जाने वाले उपवास, बेला,तेला आदि की संख्या के अङ्कों को कागज पर लिखने