________________
श्री सेठिया जैन पन्थमाला
काली रानी के उपरोक्त वचनों को मुन कर भगवान् फर• माने लगे कि हे देवानुपिये ! सुख हो वैसा कार्य करों किन्तु घमे कार्य में विलम्ब मत करो। ____तब काली रानी अपने धर्मरथ पर सवार हो कर अपने घर
आई । घर आकर कोणिक राजा के पास पहुँची और कहने लगी कि अहो देवानुप्रिय! आपकी आमा होतो श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास मैं दीक्षा अधीकार करूँ? तब कोणिक राजा ने कहा कि हे माता जिस तरह आपको सुख हो वैसा कार्य करो। ऐसा कह कर अपने कौटुम्बिक पुरुषों (नौकरों) को बुलाया और आज्ञा दी कि माता काली देवी का बहुत ठाट के साथ बहुमूल्य दीना अभिवेक की तैयारी करो। कोणिक राजा की आज्ञानुसार कार्य करके नौकरों ने वापिस सूचना दी। तत्पश्चात काली रानी को पाट पर बिठला कर एक सौ आठ कलशों से स्नान कराया। स्नान के पश्चात् बहुमूल्य वखाल"कारों से विभूषित कर हजार पुरुष उठावे ऐसी शिविका (पालकी) में बैठा कर चम्पा नगरी के मध्य में होते हुए जहाँ भगवान् महावीर स्वामी विराजमान थे वहाँ पर लाये। फिर काली रानी पालकी से नीचे उतरी । उसे अपने आगे करके कोणिक राजा भगवान् की सेवा में पहुँचे और भगवान् को विनयपूर्वक तीन बार वन्दना नमस्कार कर इस प्रकार कहने लगे कि हे भगवन् ! यह मेरीमाता काली नाम की देवी, जो मुझे इष्टकारी, पियकारी, मनोज्ञ एवं मन कोअभिराम है, इसे मैं आपको शिष्यणी
रूप (साध्वी रूप) भिता देता हूँ। आप इस शिष्यणी रूप भिक्षा 'को स्वीकार करें। भगवान् ने फरमाया कि जैसे मुख उत्पन हो वैसा करो । तब काली रानी ने उत्तर पूर्व दिशा के बीच ईशान कोण में जाकर सब वस्त्राभूषणों को अपने हाथ से उतारे