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भी सेठिया जैन प्रेन्चमामा
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बीस वर्ष तक.श्रावक पर्याय का पालन कर अन्तिम समय में संलेखना की। समाधि मरण पूर्वक आयुष्य पूरा कर सौधर्म देवलोक के अरुणगव नामक विमान में उत्पन्न हुआ । चार पल्योपम की स्थिति पूरी करके महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर सिद्धगति को प्राप्त होगा। (१०) शालेयिकापिता श्रावक-श्रावस्ती नगरी में जितशत्रु राजा राज्य करता था। उसीनगरी में शालेयिकापिता नामक एक धनाढ्य गायापति रहता था। उसके चार करोड़ सोनैया खजाने में थे, चार करोड़ व्यापार में और चार करोड़ विस्तार में लगे हुए थे। गायों के चार गोकुल थे। उसकी पत्नी का नाम फाल्गुनी था। .. एक समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी वहाँ पधारे। शालेयिकापिता ने आनन्द श्रावक की तरह भगवान् के पास श्रावक व्रत ग्रहण किये । धर्मध्यान पूर्वक समय बिताने लगा। चौदह वर्ष बीत जाने के पश्चात् अपने ज्येष्ठ पुत्र को घर का भार सम्भला कर पौषधशाला में जाकर धर्मध्यान में निरत रहने लगा। बीस वषेतक श्रावक पयोय का भली प्रकार पालन किया। अन्तिम समय में संलेखना करके समाधि मरण को प्राप्त हुआ। सौधर्म देवलोक के अरुणकील नामक विमान में देवरूप से 'उत्पन्न हुआ । चार पल्योपम की स्थिति पूर्ण करके महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा और उसी भव में मोक्ष जायगा। शेष सारा
अधिकार आनन्द श्रावक के समान है। ... दस ही श्रावकों ने चौदह वर्ष पूरे करके पन्द्रहवें वर्ष में कुटुम्ब . का भार अपने अपने ज्येष्ठ पुत्र को सम्भला दिया और स्वयं विशेष धर्म साधना में लग गये। सभी ने बीस बीस वर्ष तक श्रावक पर्याय का पालन किया। (उपासकदशांग सूत्र)