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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह ३॥ . श्रावक से कहो कि इस विषय की आलोचना कर यथायोग्य प्रायवित्त स्वीकार करे। - भगवान् के उपरोक्त कथन को स्वीकार कर गौतम स्वामी महाशतक श्रावक के पास पधारे। श्रावक ने उन्हें वन्दना नमस्कार किया ।बाद में गौतम स्वामी के कथनानुसार भगवान् की माज्ञा शिरोधार्य कर आलोचनापूर्वक यथायोग्य दण्ड प्रायश्चित्त लिया। ... महाशतक श्रावक ने बीस वर्ष पर्यन्त श्रावक पर्याय का पालन किया। अन्तिम समय में एक महीने की संलेखना कर समाधि मरण पूर्वक काल कर सौधर्म देवलोक के अरुणावतंसक विमान में चार पल्योपम की स्थिति वाला देव हुमा । वहाँ से चव कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा और वहीं से उसी भव में मोत जायगा। (8) नन्दिनीपिता श्रावक-श्रावस्ती नगरी में जितशत्रु राजा राज्य करता था। उसी नगरी में नन्दिनीपिता नामक एक धनाड्य गाथापति रहता था। उसके चार करोड़ सोनैया खजाने में, चार करोड़ व्यापार में और चार करोड़ विस्तार में लगे हुए थे। गायों के चार गोकुल थे अर्थात् चालीस हजार गायें थी । उसकी धर्मपनी का नाम अश्विनी था। ... एक समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी वहाँ पधारे । आनन्द श्रावक की तरह नन्दिनीपिता ने भी भगवान् के पास श्रावक के बारह व्रत आीकार किये और धर्मध्यान करते हुए आनन्द पूर्वक रहने लगा।. .. श्रावक के व्रत नियमों का भली प्रकार पालन करते हुए नन्दिनीपिता को चौदह वर्ष बीत गये । जब पन्द्रहवां वर्ष चल रहा था तब ज्येष्ठ पुत्र को घर का भार सौंप दिया और आप स्वयं पौषधशाला में जाकर धर्मध्यान में तल्लीन रहने लगा।
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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