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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
जाऊँ। ऐसा विचार कर स्नान कर सभा में जाने योग्य वस्त्र पहन कर सहस्राम्रवन उद्यान में भगवान् को वन्दना नमस्कार करने के लिए गया । भगवान् ने धर्मकथा कही । इसके बाद सद्दालपुत्र से उस देव के आगमन की बात पूछी। सद्दालपुत्र ने कहा हाँ भगवन् ! आपका कथन यथार्थ है । कल एक देव ने मेरे से ऐसा ही कहा था । तब भगवान् ने फरमाया कि उस देव ने मंखलिपुत्र गोशालक को लक्षित कर ऐसा नहीं कहा था । भगवान् की बात सुन कर सद्दालपुत्र विचारने लगा कि भगवान् महावीर ही सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, महामाहण हैं। पीठ फलक, शय्या, संस्तारक के लिए मुझे इनसे विनति करनी . चाहिए। ऐसा विचार कर उसने भगवान् से विनति की कि पोलासपुर नगर के बाहर मेरी पाँच सौ दुकानें हैं। वहाँ से पीठ, फलक, शय्या, संस्तारक लेकर आप विचरें । भगवान् महावीर ने उसकी प्रार्थना को सुना और यथावसर सद्दालपुत्र की पाँच सौ दुकानों में से पीठ फलक आदि लेकर विचरने लगे ।
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एक दिन सद्दालपुत्र अपनी अन्दर की शाला में से गीले मिट्टी के बर्तन निकाल कर सुखाने के लिए धूप में रख रहा था | तब भगवान् ने सहालपुत्र से पूछा कि ये बर्तन कैसे बने हैं ? सद्दालपुत्र- भगवन् ! पहले मिट्टी लाई गई । उस मिट्टी में राख आदि मिलाए गए और पानी से भिगो कर वह खूब रौदी गई। जब मिट्टी बर्तन बनाने के योग्य होगई, तब उसे चाक पर रख कर ये बर्तन बनाए गए हैं ।
भगवान् हे सद्दालपुत्र ! ये बर्तन उत्थान, बल, वीर्य, पुरुषाकार · आदि से बने हैं या बिना ही उत्थान आदि के बने हैं ? सद्दालपुत्र- ये बर्तन उत्थान पुरुषाकार पराक्रम के बिना ही बन गये हैं क्योंकि उत्थानादि तो हैं ही नहीं । सब पदार्थ
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