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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
(७)सहालपुत्र श्रावक-- पोलासपुर नगर में जितशत्रु राजा राज्य करता था। उस नगर में सद्दालपुत्र (सकडालपुत्र) नामक एक कुम्हार रहता था। वह आजीविक (गोशालक) मतका अनुयायी था।गोशालक के सिद्धान्तों काप्रेम और अनुराग उसकी रगरग में भरा हुआ था। गोशालक का सिद्धान्त ही अर्थ है, परमार्थ है दूसरे सब अनर्थ हैं, ऐसी उसकी मान्यता थी। सदालपुत्र श्रावक के पास तीन करोड़ सोनयों की सम्पत्ति थी। दस हजार गायों का एक गोकुल था। उसकी पत्नी का नाम अग्निमित्रा था । पोलासपुर नगर के बाहर सद्दालपुत्र की पाँच सौ दुकानें थीं। जिन पर बहुत से नौकर काम किया करते थे। वे जल भरने के घड़े, छोटी घड़लियाँ, कलश (बड़े बड़े माटे) सुराही कुंजे आदि अनेक प्रकार के मिट्टी के बर्तन बना कर बेचा करते थे।
एक दिन दोपहर के समय वह अशोक वन में जाकर धर्मध्यान में स्थित था । इसी समय एक देव उसके सामने प्रकट हुआ। - वह कहने लगा कि त्रिकाल ज्ञाता, केवल ज्ञान और केवल दर्शन
के धारक, अरिहन्त, जिन, केवली महामाहण कल यहाँ पधारेंगे। अतः उनको वन्दना करना,भक्ति करना तथा पीठ, फलक,शय्या, संस्तारक आदि के लिए विनति करना तुम्हारे लिए योग्य है। दो तीन बार ऐसा कह कर देव वापिस अपने स्थान को चला गया। देव का कथन सुन कर सहालपुत्र विचारने लगा कि मेरे धर्माचार्य मंखलिपुत्र गोशालक ही उपरोक्त गुणों से युक्त महामाहण हैं। वे ही कल यहाँ पधारेंगे।
दूसरे दिन प्रातः काल श्रमण भगवान् महावीर स्वामी वहाँ पधारे। नगर निवासी लोग वन्दना करने के लिये निकले।महामाहण का भागमन सुन सहालपुत्र विचारने लगा कि भगवान् महावीर स्वामी यहाँपधारे हैं तो मैं भी उन्हें वन्दना नमस्कार करने