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भी जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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. है। सब पदार्थ नियत हैं। श्रमण भगवान् महावीर स्वामी की धर्मप्राप्ति सुन्दर नहीं है, क्योंकि उसमें उत्थानादि सब कर्म हैं और नियत कुछ भी नहीं है ।देव के ऐसा कहने पर कुण्डकोलिक श्रावक ने उससे पूछा कि हे देव ! जैसा तुम कहते हो यदि वैसा ही है तो बतलाओयह दिव्य ऋद्धि, दिव्य कान्ति और दिव्य देवानुभाव (अलौकिक प्रभाव) तुम्हें कैसे प्राप्त हुए हैं ? क्या बिना ही पुरुषार्थ किए ये सब चीजें तुम्हें प्राप्त हो गई हैं ? • देव- हे देवानुप्रिय! यह दिव्य ऋद्धि, कान्ति आदि सब पदार्थ मुझे पुरुषार्थ एवं पराक्रम किए बिना ही प्राप्त हुए हैं। .. कुण्डकोलिक- हे देव ! यदि तुम्हें ये सब पदार्थ बिना ही पुरुषार्थ किए मिल गए हैं तो जिन जीवों में उत्थान, पुरुषार्थ आदि नहीं हैं ऐसे वृत्त, पाषाण आदि देव क्यों नहीं हो जाते अर्थात् जब देवऋद्धि प्राप्त करने के लिए पुरुषार्थ की आवश्यकता नहीं है तो एकेन्द्रिय आदि समस्त जीवों को देवऋद्धि प्राप्त हो जानी चाहिए । यदि यह ऋद्धि तुम्हें पुरुषार्थ से प्राप्त हुई है तो फिर तुम्हारा यह कहना कि मंखलिपुत्र गोशालक की “उत्थान आदि .. नहीं हैं। समस्त पदार्थ नियत हैं।" यह धर्मप्रज्ञप्ति अच्छी है
और श्रमण भगवान् महावीर की "उत्थान आदि हैं पदार्थ • केवल नियत नहीं हैं" यह प्ररूपणा ठीक नहीं है। इत्यादि ... तुम्हारा कथन मिथ्या है। क्योंकि उत्थान आदि फल की - माप्ति में कारण हैं। प्रत्येक फल की प्राप्ति के लिए क्रिया की , आवश्यकता रहती है। ..... : कुण्डकोलिक श्रावक के इस युक्ति पूर्ण उत्तर को सुन कर . उस देव के हृदय में शंका उत्पन्न हो गई कि योशालक का मत ठीक
है. या भगवान् महावीर का ? वाद विवाद में पराजित हो जाने के कारण उसे आत्मग्लानि भी पैदा हुई।वह देव कुण्डकोलिक
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