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भी सेठिया जैन प्रन्यमाला
इसी तरह कहा तब श्रावक को विचार आया कि यह पुरुष अनार्य है इसे पकड़ लेना चाहिए। ऐसा विचार कर वह सुरादेव श्रावक की तरह उठा । देव के चले जाने से खम्भा हाथ में आगया। तत्पश्चात् उसकी भार्या ने चिल्लाने का कारण पूछा। सब वृत्तान्त सुन कर उसने चुल्लशतक को दण्ड प्रायश्चित्त लेने के लिए कहा। तदनुसार उसने दण्ड प्रायश्चित्त लेकर अपनी आत्मा को शुद्ध किया।
अन्त में संलेखना कर समाधिमरण पूर्वक देह त्याग कर सौधर्म कल्प में अरुणसिद्ध विमान में देव रूप से उत्पन्न हुआ। चार पल्योपम की स्थिति पूर्ण करके वह महाविदेह क्षेत्र में जन्म ले कर मोक्ष प्राप्त करेगा। (६) कुण्डकोलिक श्रावक-कम्पिलपुर नगर में जितशत्रु राजा
राज्य करता था। उस नगर में कुण्डकोलिक गाथापति रहता . था। उसके पास अठारह करोड़ सोनये की सम्पत्ति थी और गायों के छः गोकुल थे । वह नगर में प्रतिष्ठित एवं मान्य था। एक समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी वहाँ पधारे। कुण्डकोलिक गाथापति दर्शनार्थ गया और आनन्द श्रावक की तरह उसने भी भगवान् के पास श्रावक के बारह व्रत अङ्गीकार किए।
एक समय कुण्डकोलिक श्रावकदोपहर के समय अशोकवन में पृथ्वीशिलापट्ट (पत्थर की चौकी) की ओर आया। स्वनामाडिन्त मुद्रिका और दुपट्टा उतार कर शिला पर रख दिया और धर्मध्यान में लग गया। ऐसे समय में उसके सामने एक देव प्रकट हुआ और उसकी मुद्रिका और दुपट्टा उठा कर आकाश में रेवड़ा .. होकर इस प्रकार कहने लगा कि हे कुण्डकोलिक श्रावक ! मखलि
पुत्र गोशालक की धर्मप्रज्ञप्ति सुन्दर (हितकर) है क्योंकि उसके ...मत में उत्थान, कर्म,बल,वीर्य, पुरुषाकार पराक्रम कुछ भी नहीं