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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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में हैं । किसी पुरुष ने आपको यह उपसर्ग दिया है। आपके व्रत नियम आदि भङ्ग हो गए हैं अतः आप दण्ड प्रायश्चित्त लेकर अपनी आत्मा को शुद्ध करो। तब सुरादेव श्रावक ने व्रत नियम आदि भङ्ग होने का दण्ड प्रायश्चित्त लिया। ___ अन्तिम समय में संलेखना द्वारा समाधिमरण प्राप्त
कर सौधर्म कल्प में अरुण कान्त विमान में देव रूप से उत्पन्न हुआ । चार पल्योपम की आयु पूरी करके महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होगा और वहीं से उसी भव में मोक्ष जायगा। (५) चुल्ल शतक श्रावक- आलम्भिका नामक नगरी में जितशत्रु राजा राज्य करता था। उस नगरी में चुल्लशतक (क्षुद्रशतक) नाम का एक गाथापति रहता था। वह बड़ा धनाढ्य सेठ था। उसके पास अठारह करोड़ सोनये थे और गायों के छः गोकुल थे । उसकी भार्या का नाम बहुला था । एक समय श्रमण भगवान् महावीर वहाँ पधारे। चुन्लशतक ने आनन्द श्रावक की तरह श्रावक के बारह व्रत अङ्गीकार किए। एक समय वह पौषधशाला में पौषध करके धर्मध्यान में स्थित था।अर्द्धरात्रि के समय एक देवता उसके सामने प्रकट हुआ। हाथ में तलवार लेकर वह चुल्लशतक श्रावक से कहने लगा कि यदि तू अपने व्रत नियमादि का भङ्ग नहीं करेगा तो मैं तेरे बड़े लड़के की तेरे सामने घात करूँगा और उसके सात टुकड़े करके उबलते हुए तेल की कड़ाही में डाल कर खून और मांस से तेरे शरीर को सींचूँगा । इसी तरह दूसरे और तीसरे लड़के के लिए भी कहा
और वैसा ही किया किन्तु चुल्लशतक श्रावक धर्मध्यान से विचलित न हुआ तब देव ने उससे कहा कि तेरे अठारह करोड़ सोनयों को घर से लाकर मालम्भिका नगरी के मागों और चौराहों में बिखेर दूंगा । देव ने दूसरी और तीसरी बार भी