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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
एक समय सुरादेव पौषध करके पौषधशाला में बैठा हुआ धर्मध्यान में तल्लीन था । अर्द्ध रात्रि के समय उसके सामने एक देव प्रकट हुआ और सुरादेव से बोला कि यदि तू अपने व्रत नियमादि को नहीं तोड़ेगा तो मैं तेरे बड़े बेटे कोमार कर उसके शरीर के पाँच टुकड़े करके उबलते हुए तेल की कड़ाही में डाल दूंगा और फिर उसके मांस और खून से तेरे शरीर को सींचंगा जिससे तूं आर्तध्यान करता हुआ अकालमरण प्राप्त करेगा । इसी प्रकार मझले और छोटे लड़के के लिए भी कहा और वैसा ही किया किन्तु सुरादेव जरा भी विचलित न हुआ। प्रत्युत उस असह्य वेदना को सहन करता रहा। मुरादेव श्रावक को अविचलित देख कर वह देव इस प्रकार कहने लगा कि हे अनिष्ट के कामी सुरादेव ! यदि तू अपने व्रतनियमादि को भङ्ग नहीं करेगातो मैं तेरे शरीर में एक ही साथ (१) श्वास (२) कास (३) ज्वर (४) दाह (५) कुतिशूल (६) भगन्दर (७) अर्श (बवासीर)(८) अजीणे (6) दृष्टिरोग (१०)मस्तकशूल (११) अरुचि (१२) अतिवेदना (१३) कर्णवेदना(१४) खुजली (१५) पेट का रोग और (१६) कोढ़, ये सोलह रोग डाल दंगा जिससे तू तड़प तड़प कर अकाल में ही प्राण छोड़ देगा। ____ इतना कहने पर भी मुरादेव श्रावक भयभीत न हुआ। तब देव ने दूसरी बार और तीसरी बार भी ऐसा ही कहा । तब मुरादेव श्रावक को विचार आया कि यह पुरुष अनाये मालूम होता है। इसे पकड़ लेना ही अच्छा है। ऐसा विचार कर वह उठा किन्तु देव तो आकाश में भाग गया, उसके हाथ में एक खम्भा आ गया जिसे पकड़ कर वह कोलाहल करने लगा। तव उसकी स्त्री धन्या आई और उससे सारा वृत्तान्त मुन कर मुरादेव से कहने लगी कि हे आर्य! आपके तीनों लड़के मानन्द