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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला (8) अष्टशत सिद्धा- एक समय में उत्कृष्ट अवगाहना वाले "१०८ जीवों का सिद्ध होना । इस भरतक्षेत्र में और इसी अव सर्पिणी के अन्दर प्रथम तीर्थङ्कर भगवान् ऋषभ देव स्वामी के 'निर्वाण समय में उत्कृष्ट अवगाहना वाले व्यक्ति एक समय में एक सौ आठ मोक्ष गये। यह भी एक अच्छेरा है। यह अच्छेरा .: उत्कृष्ट अवगाहना की अपेक्षा समझना चाहिए क्योंकि उत्कृष्ट । : अवगाहना वाले पाणी एक समय में एक सौ आठ सिद्ध नहीं, ': होते, किन्तु भगवान् ऋषभदेव स्वामी के साथ एक समय में उत्कृष्ट अवगाहना वाले एक सौ आठ व्यक्ति सिद्ध हुए थे। मध्यम अवगाहना वाले व्यक्ति एक समय में १०८ सिद्ध होने वाले अनेक हैं। अत: यह अच्छेरा उत्कृष्ट अवगाहना की अपेक्षा है। (१०) असंयत पूजा- इस अवसर्पिणी काल के अन्दर नवें । भगवान् सुविधिनाथ स्वामी के मोक्ष चले जाने पर कुछ समय के बाद पंच महाव्रतधारी साधुओं का बिल्कुल अभाव हो गया था। तब धर्म मार्ग से अनभिज्ञ प्राणी वृद्ध श्रावकों से धर्म का मार्ग पूछने लगे। उन श्रावकों ने उनसे अपनी बुद्धि अनुसार धर्म का कथन किया। श्रावकों द्वारा कथन किए गए धर्म के तत्व को जान कर वे लोग बहुत खुश हुए और धन वस्त्र आदि से उन श्रावकों की पूजा करने लगे। इस प्रकार अपनी पूजा प्रतिष्ठा होती हुई देख वे श्रावक अति गर्वोन्मत्त हो गये और अपने मन कल्पित शास्त्र बना कर धर्मानभिज्ञ लोगों को इस प्रकार उपदेश देने लगे कि सोना, चांदी, गौ, कन्या, गज (हाथी), अश्व (घोड़ा) आदि हम लोगों को भेट करने से इस लोक तथा परलोक में महान् फल की प्राप्ति होती है। सिर्फ हम लोग ही दान के पात्र हैं। दूसरे सब अपात्र हैं। इस प्रकार उपदेश करते हुए लोगों को धर्म के नाम से ठगने लगे और
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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