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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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सच्चे गुरुओं के अभाव में वे ही गुरु बन बैठे। इस प्रकार चारों ओर सच्चे गुरुओं का अभाव हो गया। दसवें तीर्थङ्कर भगवान् शीतलनाथ के तीर्थ तक असंयतियों की महती पूजा हुई थी। .: सर्वदा काल संयतियों की ही पूजा होती है और वे ही पूजा
और सत्कार के योग्य हैं, किन्तु इस अवसर्पिणी में असंयतियों की पूजा हुई थी। अत: यह भी अच्छेरा माना जाता है।
अनन्त काल में इस अवसर्पिणी में ये दस अच्छेरे हुए हैं। इसी लिए इस अवसर्पिणी को हुण्डावसर्पिणी काल कहते हैं।
कौनसे तीर्थङ्कर के समय में कितने अच्छेरे हुए थे यह यहाँ बतलाया जाता है
प्रथम तीर्थङ्कर श्री ऋषभदेव स्वामी के समय में एक यानी एक समय में उत्कृष्ट अवगाहना वाले १०८ व्यक्तियों का सिद्ध होना । दसवें तीर्थङ्कर श्री शीतलनाथ स्वामी के समय में एक अर्थात् हरिवंशोत्पत्ति । उन्नीसवें तीर्थङ्कर श्री मल्लिनाथ स्वामी के समय एक यानी स्त्रीतीर्थ । बाईसवें तीर्थङ्कर श्री नेमिनाथ भगवान् के समय एक अर्थात् कृष्ण वासुदेव का अपरकङ्का गमन । चौबीसवें तीर्थङ्कर श्री महावीर स्वामी के समय में पाँच अर्थात् (१) उपसर्ग (२) गर्भहरण (३) चमरोत्पात (४) अभव्या परिषद् (५) चन्द्रसूर्यावतरण । ये पाँच आश्चर्य भगवान् महावीर स्वामी के समय में क्रम से हुए थे। - नवें तीर्थङ्कर भगवान् सुविधिनाथ के समय तीर्थ के उच्छेद . से होने वाली असंयतों की पूजा रूप एक अच्छेरा हुआ। इस प्रकार असंयतों की पूजा भगवान् सुविधिनाथ के समय प्रारम्भ हुई थी इसी लिये यह अच्छेरा उन्हीं के समय में माना जाता है। वास्तव में नवें तीर्थङ्कर से लेकर सोलहवें भगवान् शान्तिनाथ तक बीच के सात अन्तरों में तीर्थ का विच्छेद और असंयतों