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__ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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है । पश्चात् अतिक्रद्ध होकर अतिवेग से जिसमें से सैकड़ों अंगारे निकल रहे हैं ऐसा कुलिश (वज्र) फेंका। उस वज़ के तेज प्रताप को सहन करना तो दूर किन्तु उसको देखने में भी असमर्थ चमरेन्द्र अपने शरीर के विस्तार को संकुचित करके अतिवेग से दौड़ कर श्रमण भगवान महावीर स्वामी की शरण में पहुँचा। जब वन अति निकट आने लगा तब चमरेन्द्र अपना शरीर अति सूक्ष्म बनाकर भगवान केदोनों चरणों के बीच में घुस गया।
किसी विशाल शक्ति का आश्रय लिये बिना असुर यहाँ पर नहीं आ सकते । चमरेन्द्र ने किसका आश्रय लिया है ? ऐसा विचार करशक्रेन्द्र ने उपयोग लगाया और देखा तो ज्ञात हुआ कि यह चमरेन्द्र तीर्थङ्कर भगवान महावीर स्वामी का आश्रय (शरण) लेकर यहाँ पाया हे और अब भी भगवान् के चरणों की शरण में पहुँच गया है। मेरा वज्र उसका पीछा कर रहा है। कई ऐसा न हो कि मेरे वज्र से भगवान् की आशातना हो। ऐसा विचार कर शक्रेन्द्र शीघ्रता से वहाँ आया और भगवान् के चरणों से चार अङ्गुल दूर रहते हुए वज्र को पकड़ कर वापिस खींच लिया और भगवान् से अपने अपराध की क्षमा याचना करता हुआ चमरेन्द्र से कहने लगा कि हे चमरेन्द्र ! अब लू त्रिलोक पूज्य भगवान् महावीर की शरण में आ गया है। अब तुझे कोई डर नहीं है। ऐसा कह कर भगवान् को वन्दना नमस्कार कर शक्रेन्द्र अपने स्थान को चला गया।
शक्रेन्द्र जब वापिस चला गया तब चमरेन्द्र भगवान् के चरणों के बीच से बाहर निकला और भगवान् की अनेक प्रकार से स्तुति और प्रशंसा करता हुआ अपनी राजधानी चमरचञ्चा में चला गया। चमरेन्द्र कभी ऊपर नहीं जाता है। अतः यह भी अच्छेरा माना जाता है।