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श्री सेडिमान प्रथमामा
थी। अनन्त काल में यही एक घटना हुई थी कि तीर्थङ्कर भगवान् की वाणी निष्फल गई। अतः यह भी एक अच्छेरा माना जाता है। (५) कृष्ण का अपरकङ्कागमन- हस्तिनागपुर के अन्दर युधिष्ठिर आदि पाँच पाण्डव द्रौपदी के साथ रहते थे। एक समय नारद मुनि यथेष्ट प्रदेशों में घूमते हुए द्रौपदी के यहाँ आये । उनको अविरत समझ कर द्रौपदी ने उनको नमस्कार आदि नहीं किया। नारद मुनि ने इसको अपना अपमान समझा और अति कुपित हो यह विचार करने लगे कि द्रौपदी दुखी हो ऐसा कार्य मुझे करना चाहिए । भरत क्षेत्र में तो कृष्ण वासुदेव के भय से द्रौपदी को कोई भी तकलीफ नहीं दे सकता ऐसा विचार कर नारद मुनि भरत क्षेत्र के धातकी खंड में अपरकका नाम की नगरी के स्वामी पद्मनाभ राजा के पास पहुंचे। राजा ने उठ कर उनका आदर सत्कार किया और फिर उनको अपने अन्तः पुर में ले जा कर अपनी सब रानियाँ दिखलाई और कहा कि है आर्य ! आप सब जगह यथेष्ट घूमते रहते हैं, यह बतलाइये कि मेरी रानियाँ जो देवाना के समान सुन्दर हैं ऐसी सुन्दर रानियाँ आपने किसी और राजा के भी देखी हैं ? राजा की ऐसी बात सुनकर नारद मुनि ने यह विचार किया कि यह राजा अधिक विषयासक्त एवं परस्त्रीगामी प्रतीत होता है, अतः यहाँ पर मेरा प्रयोजन सिद्ध हो जायगा । ऐसा सोच नारद मुनि ने पद्मनाभ राजा से कहा कि हे राजन् ! तू कूपमण्डूक है। जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में हस्तिनागपुर के अन्दर पाण्डवपनी द्रौपदी ऐसी सुन्दर है कि उसके सामने तेरी ये रानियाँ तो दासियाँ सरीखी प्रतीत होती हैं। ऐसा कह कर नारद मुनि वहाँ से चले गये। द्रौपदी के रूप की प्रशंसा सुनकर पद्मनाभ उसे प्राप्त करने के लिए अति व्याकुल हो उठा और अपने पूर्व भव