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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह बीस बोलों की उत्कृष्ट भाव से आराधना करने से तीर्थडुर नाम कर्म उपार्जन कर बहुत समय तक श्रमरण पर्याय का पालन कर वैजयन्त विमान में देव रूप से उत्पन्न हुए। वहाँ से चव कर मिथिला नगरी में कुम्भराजा की पत्नी प्रभावती रानी की कुक्षि से 'मल्ली' नाम की पुत्री रूप में उत्पन्न हुए। पूर्व भव में माया ( कपटाई) का सेवन करने से इस भव में स्त्री रूप में उत्पन्न होना पड़ा। क्रमशः यौवनावस्था को प्राप्त हो, दीक्षा अङ्गीकार कर केवलज्ञान उपार्जन किया । तीर्थङ्करों के होने वाले आठ महाप्रतिहार्य आदि से सुशोभित हो चार प्रकार के तीर्थ की स्थापना की। बहुत वर्षों तक केवल पर्याय का पालन कर मोक्ष सुख को प्राप्त हुए। पुरुष ही तीर्थङ्कर हुआ करते हैं । भगवान् मल्लिनाथ स्त्री रूप में अवतीर्ण होकर इस अवसर्पिणी में १६ वें तीर्थङ्कर हुए। यह भी एक अनन्त काल में अभूतपूर्व घटना होने के कारण अच्छेरा माना जाता है 1 २७९ ( ४ ) अभव्या परिषद् - चारित्र धर्म के अयोग्य परिषद् (सभा) अभव्या (अभाविता) परिषद् कहलाती है। तीर्थङ्कर भगवान् को केवल ज्ञान होने पर वे जो प्रथम धर्मोपदेश देते हैं, उसमें कोई न कोई व्यक्ति अवश्य चारित्र ग्रहण करता है यानि दीक्षा लेता है, किन्तु भगवान् महावीर स्वामी के विषय में ऐसा नहीं हुआ । जृम्भिक ग्राम के बाहर जब भगवान् महावीर स्वामी को केवल ज्ञान उत्पन्न हुआ तब वहाँ समवसरण की रचना हुई। अनेक देवी देवता मनुष्य तिर्यञ्च आदि भगवान् का धर्मोपदेश सुनने के लिए समवसरण में एकत्रित हुए । श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने धर्मोपदेशना दी, किन्तु उस उपदेश को सुन कर उस समय किसी ने चारित्र अङ्गीकार नहीं किया । ऐसी बात किसी भी तीर्थङ्कर भगवान् के समय में नहीं हुई
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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