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________________ २७८ श्री सेठिया मेम सम्बमामा . के दूसरे पहर में देवानन्दा बामणी के गर्भ का हरण कर महाराणी त्रिशला देवी की कुति में भगवान् के जीव को रख दिया। तीर्यडर की अपेक्षा यह भी अभूतपूर्व बात थी। अनन्त काल में इस भवसर्पिणी में ऐसा हुआ। अतः यह दूसरा अच्छेरा हुआ। (३) स्त्रीतीर्थ- स्त्री का तीर्थकर होकर द्वादशाही का निरूपण करना और संघ (साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका) की स्थापना करना स्त्रीतीर्थ कहलाता है। त्रिलोक में निरुपम अतिशय और महिमा को धारणा करने वाले पुरुष ही तीर्थ की स्थापना करते हैं किन्तु इस अवसर्पिणी में १६ वें तीर्थडर भगवान् मल्लिनाथ खी रूप में अवतीर्ण हुए। उनका कथानक इस प्रकार है- इस जम्बूद्वीप के अपर विदेह में सलिलावती विजय के अन्दर वीतशोका नाम की नगरी है। वहाँ पर महाबल नाम का राजा राज्य करता था । बहुत वर्ष पर्यन्त राज्य करने के पश्चात् वरधर्म मुनि के पास धर्मोपदेशश्रवण करमहाबल राजा ने अपने छः मित्रों सहित उक्त मुनि के पास दीक्षा धारण कर ली। उन सातों मुनियों ने यह प्रतिज्ञा कर ली थी कि सब एक ही प्रकार का तप करेंगे, किन्तु महाबल मुनि ने यह विचार किया कि यहाँ तो इन छहों से मैं बड़ा हूँ। इसी तरह आगे भी बड़ा बना रहूँ। अतः मुझे इनसे कुछ विशेष तप करना चाहिए । इसलिए पारणे के दिन वे महाबल मुनि ऐसा कह दिया करते थे कि श्राज तो मेरा शिर दुखता है, आज मेरा पेट दुखता है। अतः मैं तो आज पारणा नहीं करूँगा, ऐसा कह कर उपवास की जगह बेला और बेले की जगह तेलातथा तेले की जगह चौला कर लिया करते थे। इस प्रकार माया (कपट) सहित तप करने से महाबल मुनि ने उस भव में स्त्रीवेद कर्म बांध लिया और अद्भक्ति आदि तीर्थङ्कर नाम कर्म उपार्जन के योग्य
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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