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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
(स्वम दृष्टा) राजपूत के पास आई और उसके गले में वह फूल माला डाल दी। पूर्व प्रतिज्ञानुसार राज्य कर्मचारी पुरुषों ने उस राजपूत को राजा बना दिया। इस सारे वृत्तान्त को सुन कर वह भिक्षुक सोचने लगा कि मैंने भी इस राजपूत के समान ही स्वम देखा था किन्तु मुझे तो केवल एक रोट ही मिला, अतः अब वापिस सोता हूँ और फिर पूर्णचन्द्र का स्वम देख कर राज्य प्राप्त करूँगा। क्या वह भिक्षुक फिर वैसा स्वम देख कर राज्य प्राप्त कर कर सकता है ? यदि कदाचित् वह ऐसा कर भी लें किन्तु व्यर्थ गंवाया हुआ मनुष्य भव पुनः प्राप्त करना अति दुर्लभ है। (७) मथुरा के राजा जितशत्रु के एक पुत्री थी। उसने उसका स्वयंवर रचा। उसमें एक शालभंजिका (काष्ठ की बनाई हुई पुतली) बनाई और उसके नीचे आठ चक्र लगाए जो निरन्तर घूमते रहते थे । पुतली के नीचे तैल से भर कर एक कड़ाही रख दी गई। राजा जितशत्रु ने यह शर्त रखी थी कि जो व्यक्ति तैल के अन्दर पड़ती हुई पुतली की परछाई को देख कर आठ चक्रों के बीच फिरती हुई पुतलो की बाई आँख की कनीनिका (टीकी) को बाण द्वारा बींध डालेगा उसके साथ मेरी कन्या का विवाह होगा । वे सब एकत्रित हुए राजा लोग उस पुतली के
नेत्र की टीकी को बींधने में असमर्थ रहे। जिस प्रकार उस अष्ट चक्रों के बीच फिरती हुई पुतली के वाम नेत्र की टीकी को बींधना दुष्कर है उसी तरह खोया हुआ मनुष्य भव फिर -मिलना बहुत मुश्किल है।
(८) एक बड़ा सरोवर था । वह ऊपर से शैवाल से ढका हुआ था। उसके बीच में एक छोटा सा छिद्र था । सौ वर्ष व्यतीत होने पर वह छिद्र इतना चौड़ा हो जाता था कि उसमें कछुए की गर्दन समा सकती थी। ऐसे अवसर में एक समय एक
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