________________
श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
कछुए ने उस छिद्र में अपनी गरदन डाल कर आश्विन शुक्रा पूर्णिमा के चन्द्र को देखा। अपने कुटुम्ब के अन्य व्यक्तियों को भी चन्द्र दिखाने के लिए उसने जल में डुबकी लगाई । वापिस बाहर आकर देखा तो वह छिद्र बन्द हो चुका था।
अब कब सौ वर्ष बीतें जब फिर वही आश्विन पूर्णिमा पाए * और वह छिद्र खुले तब वह कछुआ अपने कुदुम्बियों को चन्द्रमा का दर्शन कराए। यह अत्यन्त कठिन है। कदाचित देवशक्ति से उस कछुए को ऐसा अवसर प्राप्त भी हो जाय, किन्तु मनुष्य भव पाकर जो व्यक्ति धर्माचरण नहीं करता हुआ अपना अमूल्य मनुष्य भव व्यर्थ खो देता है उसे पुनः मनुष्य भव मिलना अति दुर्लभ है। (8) कल्पना कीजिये-स्वयंभूरमण समुद्र के एक तीर पर गाड़ी का युग (जूमा या धोंसरा)पड़ा हुआ है और दूसरे तट पर समिला (घोंसरे के दोनों ओर डाली जाने वाली कील) पड़ी हुई है। वायुवेग से वे दोनों समुद्र में गिर पड़ें। समुद्र में भटकते भटकते वे दोनों आपस में एक जगह मिल जाय, किन्तु उस युग के छिद्र में उस समिला का प्रवेश होना कितना कठिन है। यदि कदाचित् ऐसा हो भी जाय परन्तु व्यर्थ खोया हुआ मनुष्य भव मिलना तो अत्यन्त दुर्लभ है। (१०) कल्पना कीजिये- एक महान् स्तम्भ है। एक देवता उसके टुकड़े टुकड़े करके अविभागी (जिसके फिर दो विभाग न हो सके) खण्ड करके एक नली में भर दे। फिर मेरु पर्वत की चूलिका पर उस नली को ले जाकर जोर से फूंक मार कर उसके सब परमाणुओं को उड़ा देवे । फिर कोई मनुष्य उन्हीं सब परमाणुभों को पुनः एकत्रित कर वापिस उन्हीं परमाणुओं से वह स्तम्भ बना सकता है ? यदि कदाचित् देवशक्ति से