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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
(२) जिस प्रकार देवाधिष्ठित पाशों से खेलने वाला पुरुष सामान्य पाशों द्वारा खेलने वाले पुरुष द्वारा जीता जाना मुश्किल है। यदि कदाचित् किसी भी तरह वह जीता भी जाय किन्तु व्यर्थ गंवाया हुआ मनुष्य भव फिर मिलना बहुत मुश्किल है। (३) सारे भरत क्षेत्र के गेहूँ, जौ, मक्की, बाजरा आदि सब धान्य (अनाज) एक जगह इकट्ठा किया जाय और उस एकत्रित ढेर में थोड़े से सरसों केदाने डाल दिए जाएं और सारे धान्य के ढेर को हिला दिया जाय। फिर एक वृद्धा, जिसकी दृष्टि (नेत्र शक्ति) अति क्षीण है, क्या वह उस ढेर में से उन सरसों के दानों को निकालने में समर्थ हो सकती है? नहीं । किन्तु कदा'चित् दैवशक्ति के द्वारा वह वृद्धा ऐसा कर भी ले किन्तुधर्मा
चरणादि क्रिया से रहित निष्फल गंवाया हुआ मनुष्य भव 'पुनः प्राप्त होना अति दुर्लभ है। (४) एक राजा के एक पुत्र था । राजा के विशेष वृद्ध होजाने पर भी जब राजपुत्र को राज्य नहीं मिला, तब वह राजपुत्र अपने पिता को मार कर राज्य लेने की इच्छा करने लगा। इस बात का पता मन्त्री को लग गया और उसने राजासे सारा वृत्तान्त कह दिया। तब राजा ने अपने पुत्र से कहा कि जो हमारी परम्परा को सहन नहीं कर सकता, उसको हमारे साथ धृत (जूना) खेल कर राज्य जीत लेना चाहिए। जीतने का यह तरीका है कि हमारी राजसभा में १०८स्तम्भ हैं। एक एक स्तम्भ के १०८कोण हैं। एक एक कोण को बीच में बिना हारे १०८ बार जीत ले। इस प्रकार करते सारे स्तम्भ एवं उनके सभी कोणों को बिना हारे प्रत्येक को एकसौ आठ बार जीतता जाय तो उसको राज्य मिल जायगा। उपरोक्त प्रकार से उन सारे स्तम्भों को जीतना मुश्किल है। तथापि देवशक्ति के प्रभाव से वह