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श्री जैन सिद्धान्त बोल संसह
किन्तु शुभ पुण्योदय से और देवता की सहायता एवं रवादि के प्रकाश से कोई कोई व्यक्ति लवण समुद्र को तिरने में समर्थ हो सकता है। इसी प्रकार सद्गुरु के उपदेश से तथा सिद्धान्त की वाणी का श्रवण कर सम्यग् ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूप रबत्रय के प्रकाश से कोई कोई भव्य प्राणी (भावितात्मा) संसार समुद्र को तिरने में समर्थ होता है। अतः मुमुक्षु आत्माओं को सद्गुरु द्वारा मूत्र सिद्धान्त की वाणी का श्रवण कर सम्यग ज्ञान दर्शन चारित्र रूप रनत्रय की प्राप्ति के लिए निरन्तर उद्यम करते रहना चाहिए।
(प्रश्नव्याकरण तीसरा अधर्म द्वार) ( उवाई सुत्र अधिकार १ समवसरण ) ६८०-मनुष्य भव की दुर्लभता के दस दृष्टान्त
संसार में बारह बातें दुर्लभ हैं । वे बारहवें बोल में लिखी जाएंगी। उन में पहला मनुष्य भव है। इसकी दुर्लभता बताने के लिए दस दृष्टान्त दिए गए हैं। वे इस प्रकार हैं - (१) किसी एक दरिद्री पर चक्रवर्ती राजा प्रसन्न हो गया। उसने उसे यथेष्ट पदार्थ माँगने के लिए कहा। उस दरिद्री ने कहा कि मुझे यह वरदान दीजिए कि आपके राज्य में मुझे प्रतिदिन प्रत्येक घर में भोजन करा दिया जाय और जब इस तरह बारी बारी से जीमते हुए सारा राज्य समाप्त कर लूँगा तब फिर वापिस आपके घर जीमँगा । राजा ने उसे ऐसा ही वरदान दे दिया। इस प्रकार जीमते हुए सारे भरतक्षेत्र के घरों में बारी बारी से जीम कर चक्रवर्ती राजा के यहाँ जीमने की वापिस वारी पाना बहुत मुश्किल है, किन्तु ऐसा करते हुए सम्भव है दैवयोग से वापिस बारी आ भी जाय । परन्तु प्राप्त हुए मनुष्य भव को जो व्यक्ति व्यर्थ गंवा देता है, उसको पुनः मनुष्य भव मिलना बहुत मुश्किल है।