SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 300
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६८ श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला असमर्थ होता है। इसलिए इसे मन्द अवस्था कहते हैं। (४.) बला अवस्था- तन्दुरुस्त पुरुष इस अवस्था को प्राप्त हो कर अपना बल (पुरुषार्थ) दिखाने में समर्थ होता है। इसलिए पुरुष की यह चतुर्थावस्था बला कहलाती है। (५) प्रज्ञा अवस्था- पाँचवीं अवस्था का नाम प्रज्ञा है। प्रज्ञा बुद्धि को कहते हैं । इस अवस्था को प्राप्त होने पर पुरुष में अपने इच्छितार्थ को सम्पादन करने की तथा अपने कुटुम्ब की वृद्धि करने की बुद्धि उत्पन्न होती है। अतः इस अवस्था को 'प्रज्ञा' अवस्था कहा जाता है। (६) हापनी (हायणी)- इस अवस्था को प्राप्त होने पर पुरुष की इन्द्रियाँ अपने अपने विषय को ग्रहण करने में किश्चित् हीनता को प्राप्त हो जाती हैं, इसी कारण से इस अवस्था को प्राप्त पुरुष काम भोगादि के अन्दर किश्चित् विरक्ति को प्राप्त हो जाता है। इसी लिए यह दशा हापनी (हायणी) कहलाती है। (७) प्रपश्चा- इस अवस्था में पुरुष की आरोग्यता गिर जाती है और खांसी आदि अनेक रोग आकर घेर लेते हैं। (D) प्रागभारा- इस अवस्था में पुरुष का शरीर कुछ झुक . जाता है। इन्द्रियाँ शिथिल पड़ जाती हैं। स्त्रियों का अभिय हो जाता है और बुढ़ापा आकर घेर लेता है। (8) मुंमुही- जरा रूपी राक्षसी से समाकान्त पुरुष इस नवमी . दशा को प्राप्त होकर अपने जीवन के प्रति भी उदासीन हो जाता है और निरन्तर मृत्यु की आकांक्षा करता है। .. (१०) स्वापनी (शायनी)- इस दसमी अवस्था को प्राप्त होने .. पर पुरुष अधिक निद्रालु बन जाता है । उसकी आवाज हीन, दीन और विकृत हो जाती है। इस अवस्था में पुरुष अति दुर्बल और अति दुःखित हो जाता है। यह पुरुष की दसमी अवस्था
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy