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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
श्रा साठया
• ६७०- आलोचना करने योग्य साधु के
दस गुण . दस गुणों से युक्त अनगार अपने दोषों की आलोचना करने योग्य होता है । वे इस प्रकार हैं(१) जाति सम्पत्र- उत्तम जाति वाला । उत्तम जाति वाला बुरा काम करता ही नहीं। अगर कभी उससे भूल हो भी जाती है तो शुद्ध हृदय से आलोचना कर लेता है। (२) कुल सम्पन-- उत्तम कुल वाला। उत्तम कुल में पैदा हुआ व्यक्ति लिए हुए प्रायश्चित्त को अच्छी तरह से पूरा करता है। (३) विनय सम्पन्न- विनयवान् । विनयवान् साधु बड़ों की बात मान कर हृदय से आलोचना कर लेता है। (४) ज्ञान सम्पन्न- ज्ञानवान् मोक्ष मार्ग की आराधना के लिए क्या करना चाहिए और क्या नहीं, इस बात को भली प्रकार समझ कर वह आलोचना कर लेता है। (५) दर्शन सम्पन्न-- श्रद्धालु । भगवान् के वचनों पर श्रद्धा होने के कारण वह शास्त्रों में बताई हुई प्रायश्चित्त से होने वाली शुद्धि को मानता हे और आलोचना कर लेता है। (६) चारित्र सम्पन्न-- उत्तम चारित्र वाला। अपने चारित्र को शुद्ध रखने के लिए वह दोषों की आलोचना करता है। (७) शान्त- क्षमा वाला । किसी दोष के कारण गुरु से भर्त्सना या फटकार वगैरह मिलने पर वह क्रोध नहीं करता। अपना दोष स्वीकार करके आलोचना कर लेता है। (८) दान्त- इन्द्रियों को वश में रखने वाला। इन्द्रियों के विषयों में अनासक्त व्यक्ति कठोर से कठोर प्रायश्चित्त को भी शीघ्र स्वीकार कर लेता है। वह पापों की आलोचना भी शुद्ध