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________________ २५८ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला श्रा साठया • ६७०- आलोचना करने योग्य साधु के दस गुण . दस गुणों से युक्त अनगार अपने दोषों की आलोचना करने योग्य होता है । वे इस प्रकार हैं(१) जाति सम्पत्र- उत्तम जाति वाला । उत्तम जाति वाला बुरा काम करता ही नहीं। अगर कभी उससे भूल हो भी जाती है तो शुद्ध हृदय से आलोचना कर लेता है। (२) कुल सम्पन-- उत्तम कुल वाला। उत्तम कुल में पैदा हुआ व्यक्ति लिए हुए प्रायश्चित्त को अच्छी तरह से पूरा करता है। (३) विनय सम्पन्न- विनयवान् । विनयवान् साधु बड़ों की बात मान कर हृदय से आलोचना कर लेता है। (४) ज्ञान सम्पन्न- ज्ञानवान् मोक्ष मार्ग की आराधना के लिए क्या करना चाहिए और क्या नहीं, इस बात को भली प्रकार समझ कर वह आलोचना कर लेता है। (५) दर्शन सम्पन्न-- श्रद्धालु । भगवान् के वचनों पर श्रद्धा होने के कारण वह शास्त्रों में बताई हुई प्रायश्चित्त से होने वाली शुद्धि को मानता हे और आलोचना कर लेता है। (६) चारित्र सम्पन्न-- उत्तम चारित्र वाला। अपने चारित्र को शुद्ध रखने के लिए वह दोषों की आलोचना करता है। (७) शान्त- क्षमा वाला । किसी दोष के कारण गुरु से भर्त्सना या फटकार वगैरह मिलने पर वह क्रोध नहीं करता। अपना दोष स्वीकार करके आलोचना कर लेता है। (८) दान्त- इन्द्रियों को वश में रखने वाला। इन्द्रियों के विषयों में अनासक्त व्यक्ति कठोर से कठोर प्रायश्चित्त को भी शीघ्र स्वीकार कर लेता है। वह पापों की आलोचना भी शुद्ध
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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