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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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लोकनिन्दासे बचना भी ऐसे आहार को वर्जने का कारण है। (१२) छिन्न- जिसके हाथ या पैर कटे हुए हों। (१३) त्रैराशिक- नपुंसक । नपुंसक से परिचय साधु के लिए वर्जित है। इसलिए उससे बार बार भिक्षा नहीं लेनी चाहिए। लोक निन्दा से बचने के लिए भी उससे भिक्षा लेना वर्जित है। (१४) गुर्विणी- गर्भवती। (१५) बालवत्सा- दूध पीते बच्चे वाली। छोटे बच्चे के लिए माता को हर वक्त सावधान रहना चाहिए। अगर वह बालक को जमीन या चारपाई आदि पर सुलाकर भिक्षा देने के लिए जाती है तो बिल्ली आदि से बालक को हानि पहुँचने का भय है। उस समय आहार वर्जने का यही कारण है। .. (१६) भुञ्जाना-भोजन करती हुई। भोजन करते समय भिक्षा देने के लिए कच्चे पानी से हाथ धोने में हिंसा होती है। हाथ नहीं धोने पर जूठे हाथों से भिक्षा लेने में लोक निन्दा है। भोजन करते हुए से भिक्षा न लेने का यही कारण है। (१७) घुसुलिती- दही आदि बिलोती हुई । उस समय भिक्षा देने के लिए उठने में हाथ से दही टपकता रहता है। इससे नीचे चलती हुई कीड़ी आदि की हिंसा होने का भय है। इसी कारण से उस समय पाहार लेना वर्जित है। (१८) भर्जमाना- कड़ाही आदि में चने आदि भूनती हुई। (१६) दलयन्ती- चक्की में गेहूँ आदि पीसती हुई। (२०) कण्डयन्ती- ऊखली में धान प्रादि कूटती हुई। (२१) पिंषन्ती-शिला पर तिल, आमले आदि पीसती हुई। (२२) पिंजयन्ती-रूई आदि पीजती हुई। (२३) रुञ्चन्ती- चरखी (कपास से बिनौले अलग करने की मशीन) द्वारा कपास बेलती हुई।