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भी सेठिया जैन अन्धमाना
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भज्जती य दलंती कंडती चेव तए पीसंती। पीजंती रंवंती कत्ती पमदमाणी य॥ बकायवग्गहस्था समपट्टा निक्खिवितु ते चेव । तेवोनाहंती संघटती रभंती य॥ संसत्तेण य दव्वेण लित्तहत्या य लित्समसा य । उव्वतंती साहारखं व दिती य चोरिययं ॥ पाहुडियं च ठवंती सपञ्चवाया परं च उदित्स।
भाभोगमणाभोगेण दलंती बज्जणिज्जा ए॥ (१) बाल-बालक के नासमझ और घर में अकेले होने पर उससे आहार लेना वर्जित है। (२) वृद्ध-- जिसके मुँह से लाला आदि पड़ रही हो। (३) मत्त-शराब भादि पीया हुआ। (४) उन्मत्त-- घमण्डी या पागल जो वात या और किसी बीमारी से अपनी विचारशक्ति खो चुका हो । (५) वेपमान- जिसका शरीर कांप रहा हो। (६) ज्वरित-- ज्वर रोग से पीड़ित । (७) अन्ध-जिसकी नजर चली गई हो। (E) प्रगलित- गलित कुष्ट वाला। (6) मारूढ़- खड़ाऊ या जूते आदि पहिना हुआ। (१०-११)बद्ध- हथकड़ीया बेड़ियों से बंधा हुमा। बँधा हुआ दायक जब भिक्षा देता है तो देने और लेने वाले दोनों को दुःख होता है, इस कारण से पाहार लेने की वर्जना है । दाता को अगर देने में प्रसन्नता हो या साधु का ऐसा अभिग्रह हो तो लेने में दोष नहीं है। ___ हाय आदि मुविधापूर्वक नहीं धो सकने के कारण उसके अशुचि होने की भी माशङ्का है। अशुचिता से होने वाली