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श्री जैन सिद्धान्त पोल संग्रह
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है। 'यह इस घर को छोड़ कर कहीं नहीं जाता' इस प्रकार लोग कहने लगते हैं, जिससे लघुता आती है। साधु के सत्र जगह विचरते रहने से सभी लोगों का उपकार होता है, सभी जगह धर्म का प्रचार होता है। एक जगह रहने से सब जगह धर्मप्रचार नहीं होता है।साधु के एक जगह रहने से उसे व्यवहार का ज्ञान नहीं हो सकता, इत्यादि। नीचे लिखे कारणों से साधु एक स्थान पर एक मास से अधिक ठहर सकता है। ..' (क) कालदोष-दुर्भिक्ष आदि का पड़ जाना। जिससे दूसरी जगह जाने में आहार मिलना असंभव हो जाय।
(ख) क्षेत्रदोष-विहार करने पर ऐसे क्षेत्र में जाना पड़े जो संयम के लिए अनुकूल न हो।
(ग) द्रव्यदोष-दूसरे क्षेत्र के आहारादि शरीर के प्रतिकूल हों। (घ) भावदोष- अशक्ति, अस्वास्थ्य, ज्ञानहानि आदि कारण उपस्थित होने पर। - मासकल्प प्रथम और अन्तिम तीर्थङ्कर के साधुओं के लिए ही है। बीच वालों के लिए नहीं है। (१०) पर्यषणा कल्प- सावन के प्रारम्भ से कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा तक चार महीने एक स्थान पर रहना पयेषणा कल्प हैं। यह कल्प प्रथम और अन्तिम तीर्थङ्कर के साधुओं के लिए ही है। मध्यम तीर्थ डुरों के साधुओं के लिए नहीं है। किसी दोष के नलगने पर वे करोड़ पूर्व भी एक स्थान पर ठहर सकते हैं। दोष होने पर एक महीने में भी विहार कर सकते हैं। ___महाविदेह क्षेत्र के साधुओं का कम्प भी बीच वाले तीर्थर
के साधुओं सरीखा है। ____ ऊपर लिखे दस कल्पप्रथम तथा अन्तिम तीर्थडुर के साधुओं के लिए स्थित कल्प हैं अर्थात् अवश्य कर्तव्य हैं।