________________
२४०
श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
दीक्षा लें और एक साथ ही अध्ययनादि समाप्त करलें तो लोक रूढि के अनुसार पहले पिता याराजा आदि को उपस्थापना दी जाती है। यदि पिता वगैरह में दो चार दिन का विलम्ब हो तो पुत्रादि को उपस्थापनादेने में उतने दिन ठहर जाना चाहिए। यदि अधिक विलंब हो तो पिता से पूछ कर पुत्र को उपस्थापना दे देनी चाहिए। यदि पिता न माने तो कुछ दिन ठहर जाना ही उचित है।
जिसकी पहले उपस्थापना होगी वही ज्येष्ठ माना जायगा और बाद वालों का वन्दनीय होगा। पिता को पुत्र की वन्दना करने में क्षोभ या संकोच होने की सम्भावना है। यदि पिता पुत्र को ज्येष्ठ समझने में प्रसन्न हो तो पुत्र को पहले उपस्थापना दी जा सकती है। (८) प्रतिक्रमण कल्प- किए हुए पापों की आलोचना प्रतिक्रमण कहलाती है। प्रथम तथा अन्तिम तीर्थङ्कर के साधु के लिए यह स्थित कल्प है अर्थात् उन्हें प्रति दिन प्रातःकाल और सायंकाल प्रतिक्रमण अवश्य करना चाहिए । मध्यम तीर्थङ्करों के साधुओं के लिए कारण उपस्थित होने पर ही करने का विधान है। प्रति दिन बिना कारण के करने की आवश्यकता नहीं। प्रथम तथा अन्तिम तीर्थकर के साधुओं को प्रमादवश अजानपणे में दोष लगने की सम्भावना है, इस लिए उन के लिए प्रतिक्रमण आवश्यक है । मध्यम तीर्थंकरों के साधु अप्रमादी होते हैं, इसलिए उन्हें बिनादोष लगेप्रतिक्रमण की आवश्यकता नहीं। (६) मास कल्प- चतुर्मास या किसी दूसरे कारण के बिना एक मास से अधिक एक स्थान पर न ठहरना मासकल्प है। एक स्थान पर अधिक दिन ठहरने में नीचे लिखे दोष हैं--
एक घर में अधिक ठहरने से स्थान में आसक्ति हो जाती