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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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सामान्य रूप से साध्वियों के लिए बनाया गया प्रथम और अन्तिम को छोड़ कर बाकी साधुओं को कल्पता है।
(ग) यदि सामान्य रूप से उपाश्रय को निमित्त करके बनाया जाय तो किसी को नहीं कल्पता । प्रथम तीर्थङ्कर के किसी उपाश्रय को उद्दिष्ट करके बनाया जाय तो प्रथम और अन्तिम को नहीं कल्पता। बीच वालों को कल्पता है । बीच वालों को सामान्य रूप से उद्दिष्ट किया जाय तो किसी को नहीं कल्पता। यदि किसी विशेष को उद्दिष्ट किया जाय तो उसे तथा प्रथम
और अन्तिम तीर्थङ्कर के उपाश्रयों को छोड़ कर बाकी सब को कल्पता है । अन्तिम तीर्थङ्कर के उपाश्रय को उद्दिष्ट करके बनाया गया आहार प्रथम और अन्तिम तीर्थङ्कर के उपाश्रयों को नहीं कल्पता । बाकी को कल्पता है।
(घ) प्रथम तीर्थङ्कर के किसी एक साधु को उद्दिष्ट करके बनाया गया आहार प्रथम और अन्तिम के किसी साधु को नहीं कल्पता। मध्यम तीर्थङ्करों में सामान्य रूप से किसी एक साधु के लिए बनाया गया आहार किसी एक साधु के ले लेने पर दूसरे साधुओं को कल्पता है । नाम खोल कर किसी विशेष साधु के लिए बनाया गया मध्यम तीर्थङ्करों के दूसरे साधुओं को कल्पता है। (३) शय्यातरपिण्ड कल्प- साधु, साध्वी जिस के मकान में उतरें उसे शययातर कहते हैं । शय्यातर से आहार आदि लेने के विषय में बताए गए आचारकोशय्यातरपिंड कल्पकहते हैं। शय्यातर से आहार आदि न लेने चाहिए। यह कल्प प्रथम, मध्यम तथा अन्तिम सभी तीर्थंकरों के साधुओं के लिए है। शय्यातर का घर समीप होने से उसका आहारादि लेने में बहुत से दोषों की सम्भावना है। (४) राजपिंड कल्प-राजा या बड़े ठाकुर आदि का आहार राज
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