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श्रीजैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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अचेल फल्प का अनुष्ठान प्रथम तथा अन्तिम तीर्थङ्कर के शासन में होता है, क्योंकि प्रथम तीर्थङ्कर के साधु ऋजुजड़ तथा अन्तिम तीर्थकर के वक्रजड होते हैं अर्थात् पहले तीर्थङ्कर के साधु सरल और भद्रीक होने से दोषादोष का विचार नहीं कर सकते । अन्तिम तीर्थंकर के साधु वक्र होने से भगवान् की आज्ञा में गली निकालने की कोशिश करते रहते हैं। इस लिए इन दोनों के लिए स्पष्ट रूप से विधान किया जाता है। . बीच के अर्थात् द्वितीय से लेकर तेईसवें तीर्थङ्करों के साधु
ऋजुप्राज्ञ होते हैं। वे अधिक समझदार भी होते हैं और धर्म ___ का पालन भी पूर्णरूप से करना चाहते हैं। वे दोष आदि का विचार स्वयं कर लेते हैं, इस लिए उनके लिए छूट है। वे अधिक मूल्य वाले तथा रंगीन वस्त्र भी ले सकते हैं, उनके लिए अचेल कल्प नहीं है। (२) औदेशिक कल्प- साधु, साध्वी, याचक आदि को देने के लिए बनाया गया आहार प्रौद्देशिक कहलाता है। औदेशिक
आहार के विषय में बताए गए आचार को औदेशिक कल्प कहते हैं । औद्देशिक आहार के चार भेद हैं-- (क) साधु या साध्वी श्रादि किसी विशेष का निर्देश बिना किए सामान्य रूप से संघ के लिए बनाया गया आहार। (ख) श्रमण याश्रमणियों के लिए बनाया गया आहार। (ग) उपाश्रय अर्थात् अमुक उपाश्रय में रहने वाले साधु तथा साध्वियों के लिए बनाया गया
आहार । (घ) किसीव्यक्ति विशेष के लिए बनाया गया आहार । ___ (क) यदि सामान्य रूप से संघ अथवा साधु, साध्वियों को उद्दिष्ट कर आहार बनाया जाता है तो वह प्रथम, मध्यम और अन्तिम किसी भी तीर्थङ्कर के साधु, साध्वियों को नहीं कल्पता।
यदि प्रथम तीर्थङ्कर के संघ को उद्दिष्ट करके अर्थात् प्रथम