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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला (५) तप- इच्छा का रोकना और कष्ट का सहन करना । (६) संयम -- मन, वचन और काया की प्रवृत्ति पर अंकुश रखना। उनकी अशुभ प्रवृत्ति न होने देना । पाँचों इन्द्रियों का दमन, चारों कषायों पर विजय, मन, वचन और काया की प्रवृत्ति को रोकना तथा प्राणातिपात यदि पाँच पापों से निवृत्त होना, इस प्रकार संयम १७ प्रकार का है। (७) सत्य - सत्य, हित और मित वचन बोलना । (८) शौच - शरीर के अङ्गों को पवित्र रखना तथा दोष रहित आहार लेना द्रव्य शौच है । आत्मा के शुभ भावों को बढ़ाना भाव शौच है । ( ) अकिंचनत्व - किसी वस्तु पर मूर्छा न रखना । परिग्रह बढ़ाने, संग्रह करने या रखने का त्याग करना । (१०) ब्रह्मचर्य - नव बाड़ सहित पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना । २३४ ( नवतत्त्व गाथा २६ ) ( समवायांग १० ) ( श्री शान्तसुबारस भाग १ संवर भावना ) ६६२ - कल्प दस शास्त्र में लिखे हुए साधुओं के अनुष्ठान विशेष अथवा आचार को कल्प कहते हैं। इसके दस भेद हैं ( १ ) अचेल कल्प - वस्त्र न रखना या थोड़े, अल्प मूल्य वाले तथा जीर्ण वस्त्र रखना अचेल कल्प कहलाता है । यह दो तरह का होता है । वस्त्रों के अभाव में तथा वस्त्रों के रहते हुए । तीर्थङ्कर या जिनकल्पी साधुओं का वस्त्रों के अभाव में अचेल कल्प होता है । यद्यपि दीक्षा के समय इन्द्र का दिया हुआ देवदूष्य भगवान् के कन्धे पर रहता है, किन्तु उसके गिर जाने पर बस्त्र का अभाव हो जाता है। स्थविरकल्पी साधुओं का कपड़े होते हुए अचेल कल्प होता है, क्योंकि वे जीर्ण, थोड़े तथा कम मूल्य वाले वस्त्र पहनते हैं ।
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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