________________
श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
२२९
राइयंसि' अर्थात् छमस्थ अवस्था की अन्तिम रात्रि में ये स्वम देखे थे अर्थात् जिस रात्रि में ये स्वप्न देखे उसके दूसरे दिन ही भगवान् को केवल ज्ञान हो गया था। कुछ का कथन है कि 'अन्तिम राइयंसि' अर्थात् 'रात्रि के अन्तिम भाग में ।' यहाँ पर किसी रात्रि विशेष का निर्देश नहीं किया गया है। इससे यह स्पष्ट नहीं होता कि स्वम देखने के कितने समय बाद भगवान् को केवलज्ञान हुआ था। इस विषय में भिन्न भिन्न प्रतियों में जो अथे दिए गए हैं वे ज्यों के त्यों यहाँ उद्धृत किये जाते हैं___ समणे भगवं महावीरे छउमस्थ कालियाए अंतिमराइयंसि इमे दस महासुविणे पासित्ता णं पडिबुद्ध ।
(१) अर्थ- ज्यां रे श्रमण भगवन्त महावीर छअस्थपणां मां हता त्यारे ते ओ एक रात्रिना छेल्ला प्रहर मां आ दस स्वमो जोई ने जाग्या।
(भगवनी शतक १६ उद्देशा ६, जैन साहित्य प्रकाशन ट्रस्ट अहमदाबाद द्वारा विक्रम संवत् १६० में प्रकाशित, पं. भगवानदास हरखचन्द दोशी कृत गुजराती अनुवाद, चतुर्थ खण्ड पृष्ठ १६)
(२) श्रमण भगवन्त श्री महावीर देव छमस्थ काल पणा नी रात्रइ नइ अन्तिम भागे एह दस वक्ष्यमाण मोटा खम देखी ने जागइ।
(हस्त लिखित भगवती ५७० पानों वाली का टब्बा अर्थ पृष्ठ ३८६, मेठिया जैन ग्रन्थालय बीकानेर की प्रति)
(३) 'अन्तिम राइयंसि'- रात्ररन्तिमे भागे, अर्थात् रात्रि के अन्तिम भाग में। (भगवती, भागमोदय समिति द्वारा वि० सं० १९७७ में प्रकाशित संस्कृत टीका पृष्ठ ७९०)
(४) अन्तिम राइयंसि-अन्तिमा अन्तिम भागरूपा अवयवे