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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
का स्वरूप समझाएंगे। (७) महासागर को भुजाओं द्वारा तैरने रूप सातवें स्वम का यह फल होगा कि श्रमण भगवान महावीर स्वामी अनादि और अनन्त संसार समुद्र को पार कर निर्वाण पद को प्राप्त करेंगे। (८) तेजस्वी सूर्य को देखने का यह फल होगा कि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी अनन्त, अनुत्तर, निरावरणसमग्र और पतिपूर्ण केवलज्ञान और केवलदर्शन को प्राप्त करेंगे। (8) नवें स्वम का यह फल होगा कि देवलोक, मनुष्यलोक
और असुरलोक (भवनपति और वाणव्यन्तर देवों के रहने की जगह) में 'ये केवलज्ञान और केवलदर्शन के धारक श्रमण भगवान् महावीर स्वामी हैं ' इस तरह की उदार कीर्ति, स्तुति, सन्मान और यश को प्राप्त होंगे। (१०) दसवें स्वप्न में भगवान ने अपने आप को मेरुपर्वत की मन्दर चूलिका पर श्रेष्ठ सिंहासन पर बैठे हुए देखा। इसका यह फल होगा कि श्रमण भगवान महावीर स्वामी केवलज्ञानी होकर देव, मनुष्य और असुरों (भवनवासी और व्यन्तरदेव) से युक्त परिषद् में विराज कर धर्मोपदेश करेंगे।
श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने छमस्थ अवस्था के अन्दर एक मुहूर्त की निद्रा में ये दस स्वम देखे, जिनका फल ऊपर बताया गया है। भगवान् साढ़े बारह वर्ष तक छमस्थ अवस्था में रहे। उस में सिर्फ यह एक मुहूर्तमात्र जो निद्रा (जिस में दस स्वम देखे थे) आई थी वह प्रमाद सेवन किया। इसके सिवाय उन्होंने किसी तरह का कोई भी प्रमाद सेवन नहीं किया।
(भगवती शतक १६ उद्देशा ६)(ठाणांग, सूत्र ७५०) भगवान महावीर स्वामी ने ये दस खम किस रात्रि में देखे थे, इस विषय में कुछ की ऐसी मान्यता है कि 'अन्तिम