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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
समुदायोपचारात् । सा चासो रात्रिका च अन्तिमरात्रिका तस्यां, रात्ररवसाने इत्यर्थः। (भागमोदय समिति द्वारा सं० १६७६ में प्रकाशित ठाणांग १०, सूत्र ७५० पृष्ठ १०१)
(५) अन्तिम राइया- अन्तिम रात्रिका, अन्तिमा अन्तिम भाग रूपा अवयवे समुदायोपचारात् सा चासो रात्रिका चान्तिमरात्रिका । राजेरवसाने इत्यर्थः।
अर्थात्- अन्तिम भाग रूप जो रात्रि वह अन्तिम रात्रि है। यहाँ रात्रि के एक भाग को रात्रि शब्द से कहा गया है। इस प्रकार अन्तिम भाग रूप रात्रि अर्थ निकलता है। अर्थात् रात्रि के अवसान में।
(मभिधानराजेन्द्र कोष प्रथम भाग पृष्ठ १०१) (६) अन्तिम राइ-- रात्रिनो छेड़ो (छेल्लो) भाग, पिछली रात। (शतावधानी पं० रत्नचन्द्रजी महाराज कृत अर्धमागधी कोष प्रथम भाग पृष्ठ ३४)
(७)अन्तिम राइयंसि-श्रमण भगवन्त श्री महावीर छद्मस्था ए छेल्ली रात्रि ना अन्ते। (विक्रम संवत् १८८४ में हस्त लिखित सवा लखी भगवती शतक १६ उ० ६ )
(८) छ० छमस्थ, का० काल में, अं० अन्तिम रात्रि में, इ० ये, द. दस, महा० महास्वम, पा० देख कर, प० जागृत हुए।
श्री श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी छबस्थ अवस्था की अन्तिम रात्रि में दस वमों को देख कर जागृत हुए।
(भगवती सूत्र अमोलख ऋषिजी कृत हिन्दी अनुवाद पृष्ठ २२२४-२५ सन् १३२०, वीर संवत् २४४२ में प्रकाशित ) ६५८-लब्धि दस
ज्ञान आदि के प्रतिबन्धक ज्ञानावरणीय श्रादि कर्मों के क्षय,