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________________ २२६ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला यक्ष बहुत भयभीत हुआ और भगवान् से अति विनय पूर्वक अपने अपराध की पुनः पुनः क्षमा मांगने लगा। ., उस रात्रि में पौने चार पहर तक भगवान् उस यक्ष द्वारा दिये गये उपसर्गों को समभाव से सहन करते रहे। रात्रि के अन्तिम भाग में अर्थात् प्रातः काल जब एक मुहूत्ते मात्र रात्रि शेष रही तब भगवान् को एक मुहूर्त निद्रा आगई। उस समय श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने दस स्वप्न देखे । वे इस प्रकार हैं(१) प्रथम स्वम में एक भयङ्कर अति विशाल काय और तेजस्वी रूप वाले ताड़ वृक्ष के समान पिशाच को पराजित किया। (२) दूसरे स्वम में सफेद पंख वाले पुस्कोकिल (पुरुष जाति के कोयल) को देखा। साधारणतया कोयल के पंख काले होते हैं, किन्तु भगवान् ने स्वम में सफेद पंख वाले कोयल को देखा। (३) तीसरे स्वम में विचित्र रंगों के पंख वाले कोयल को देखा। (४) चौथे स्वप्न में एक महान् सर्वरत्नमय मालायुगल (दो मालाओं) को देखा। (५) पाँचवें स्वम में एक विशाल श्वेत गायों के झुण्ड को देखा। (६) छठे स्वप्न में चारों तर्फ से खिले फूलों वाले एक विशाल पद्म सरोवर को देखा। . (७) सातवें स्वप्न में हजारों तरंगों (लहरों) और कल्लोलों से युक्त एक महान् सागर को भुजाओं से तैर कर पार पहुँचे । (८) आठवें स्थान में अति तेज पुञ्ज से युक्त सूर्य को देखा। (६) नवें स्वम में मानुषोत्तर पर्वत को नील वैडूर्य्य मणि के समान अपने अन्तरभाग (उदर मध्य स्थित अवयव विशेष) से चारों तरफ से आवेष्टित एवं परिवेष्टित (घिरा हुआ)देखा। (१०) सुमेरु पर्वत की मंदर चूलिका नाम की चोटी पर श्रेष्ठ सिंहासन पर बैठे हुए अपने आप को देखा।
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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