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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
(१०) अनुत्तर लाघव ( हलकापन) घाती कर्मों का क्षय हो जाने के कारण उनके ऊपर संसार का बोझ नहीं रहता । क्षान्ति आदि पाँच चरित्र भेद हैं और चारित्र मोहनीय कर्म के क्षय से उत्पन्न होते हैं। ( ठाणांग, सूत्र ७६३)
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६५६ - पुण्यवान् को प्राप्त होने वाले दस बोल
जो मनुष्य अच्छे कर्म करते हैं, वे आयुष्य पूर्ण करके ऊँचे देवलोक में महाऋद्धि वाले देव होते हैं। वहाँ सुखों को भोगते हुए अपनी पूरी करके मनुष्य लोक में उत्पन्न होते हैं । उस समय उन्हें दस बोलों की प्राप्ति होती है - (१) क्षेत्र (ग्रामादि), वास्तु (घर), सुवर्ण ( उत्तम धातुएं ) पशु दास (नौकर चाकर और चौपाए ) इन चार स्कन्धों से भरपूर कुल में पैदा होते हैं ।
(२) बहुत मित्रों वाले होते हैं।
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(३) बहुत सगे सम्बन्धियों को प्राप्त करते हैं ।
( ४ ) ऊँचे गोत्र वाले होते हैं ।
( ५ ) कान्ति वाले होते हैं ।
( ६ ) शरीर नीरोग होता है ।
(७) तीव्र बुद्धि वाले होते हैं ।
(८) कुलीन अर्थात् उदार स्वभाव वाले होते हैं । ( 8 ) यशस्वी होते हैं ।
( उत्तराध्ययन ० ३ गाथा १७-१८ )
(१०) बलवान होते हैं । ६५७ - भगवान् महावीर स्वामी के दस स्वप्र
श्रमण भगवान् महावीर स्वामी उग्रस्थ अवस्था में (गृहस्थ वास में) एक वर्ष पर्यन्त वर्षीदान देकर देव, मनुष्य और असुरों से परिवृत हो कुण्डपुर नगर से निकले। मिगसर कृष्णा
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