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दसवां बोल संग्रह
६५५ - केवली के दस अनुत्तर
दूसरी कोई वस्तु जिससे बढ़ कर न हो अर्थात् जो सबसे बढ़ कर हो उसे अनुतर कहते हैं । केवली भगवान् में दस बातें अनुत्तर होती हैं
(१) अनुचर ज्ञान - ज्ञानावरणीय कर्म के सर्वथा क्षय से केवल ज्ञान उत्पन्न होता है। केवल ज्ञान से बढ़ कर दूसरा कोई ज्ञान नहीं है। इसलिए केवली भगवान् का ज्ञान अनुत्तर कहलाता है। (२) अनुत्तर दर्शन - दर्शनावरणीय अथवा दर्शनमोहनीय कर्म के सम्पूर्ण क्षय से केवल दर्शन उत्पन्न होता है । (३) अनुत्तर चारित्र - चारित्र मोहनीय कर्म के सर्वथा क्षय से यह उत्पन्न होता है ।
(४) अनुत्तर तप - केवली के शुक्ल ध्यानादि रूप अनुत्तर तप होता है
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(५) अनुत्तर वीर्य्य - वीर्य्यान्तराय कर्म के क्षय से अनन्तवीर्य पैदा होता है ।
(६) अनुत्तर क्षान्ति (क्षमा) - क्रोध का त्याग । (७) अनुत्तर मुक्ति- लोभ का त्याग । (८) अनुत्तर आर्जव ( सरलता ) - माया का त्याग । (६) अनुत्तरमार्दव (मृदुता ) - मान का त्याग ।
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