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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
(८) माणवक निधि-शूरवीर योद्धाओं का इकट्ठा करना, कवच श्रादि बनाना, हथियार तैयार करना, व्यह रचना आदि युद्धनीति तथा साम, दाम, दण्ड और भेद चार प्रकार की दण्डनीति माणवक निधि में होती है। (8)शंख निधि- नाच तथा उसके सब भेद, नाटक और उसके सब भेद, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चतुर्विध पुरुषार्थ का साधक अथवा संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रन्श और संकीणे भाषा में बनाया हुआ अथवा सम छन्दों से बना हुआ, विषम छन्दों से बना हुआ, अर्द्धसम छन्दों से बना हुआ और गद्ययन्ध, इस प्रकार चार तरह के गद्य, पद्य और गेय काव्य की उत्पत्ति शंख निधि में होती है। सब तरह के बाजे भी इसी निधि में होते हैं।
ये निधियाँ चक्र पर प्रतिष्ठित हैं। इन की पाठ योजन ऊँचाई, नौ योजन चौड़ाई तथा बारह योजन लम्बाई होती है। ये पेटी के आकार वाली हैं। गंगा नदी का मुँह इनका स्थान है। इनके किवाड़ वैडूर्यमणि के बने होते हैं । वे सोने से बनी हुई तरह तरह के रत्नों से प्रतिपूर्ण, चन्द्र, मूर्य चक्र आदि के चिह्न वाली तथा समान स्तम्भ और दरवाजों वाली होती हैं । इन्हीं नामों वाले निधियों के अधिष्ठाता त्रायस्त्रिंश देव हैं।
(ठाणांग, सूत्र ६७३)