________________
भी जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
२२१
• बन्दरगाह, द्रोणमुख जहाँ जल और खुश्की दोनों तरह का मार्ग
हो, मडंब अर्थात् ऐसा जंगल जहाँ नजदीक बस्ती न हो, स्कन्धावार अर्थात् सेनाका पड़ाव, इत्यादि वस्तुओं का प्रबन्ध नैसर्प निधि के द्वारा होता है। (२) पाण्डुक निधि- दीनार वगैरह सोना चाँदी के सिक्के
आदि गिनी जाने वाली वस्तुएं और उन्हें बनाने की सामग्री, जिन का माप कर व्यवहार होता है ऐसे धान तथा वस्त्र वगैरह, उन्मान अर्थात् तोली जाने वाली वस्तुएं गुड़ खांड आदि तथा धान्यादि की उत्पत्ति का सारा काम पाण्डुक निधि में होता है। (३) पिझल निधि- स्त्री, पुरुष, हाथी घोड़े आदि सब के
आभूषणों का प्रबन्ध पिङ्गल निधि में होता है। (४) सर्वरत्न निधि-- चक्रवर्ती के चौदह रत्न अर्थात् चक्रादि सात एकेन्द्रिय तथा सेनापति आदि सात पञ्चेन्द्रिय रत्न सर्वरत्न नाम की चौथी निधि में होते हैं। (५) महापद्म निधि- रंगीन तथा सफेद सब प्रकार के वस्त्रों की उत्पत्ति तथा उनका विभाग वगैरह सारा काम महापद्म नाम की पाँचवी निधि में होता है। . (६) काल निधि-भूत काल के तीन वर्ष, भविष्यत् काल के तीन वर्ष तथा वर्तमान काल का ज्ञान, घट, लोह, चित्र, वस्त्र नापित इन में प्रत्येक के बीस भेद होने से सौ प्रकार का शिल्प तथा कृषिवाणिज्य वगैरह कर्म काल निधि में होते हैं । ये तीनों बातें अर्थात् काल ज्ञान, शिल्प और कर्म प्रजाहित के लिए होती हैं। (७)महाकाल निधि-खानों से सोना चांदी लोहाआदिधातुओं की उत्पत्ति तथा चन्द्रकान्त आदि मणियाँ, मोती, स्फटिक मणि की शिलाएं और मूंगे आदि को इकट्ठा करने का काममहाकाल निधि में होता है।