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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
(५) शिल्पार्य-जिस शिल्प में हिंसा आदि पाप नहीं लगते ऐसे शिल्प को करने वाले। (६) भाषार्य-जिनकी अर्धमागधी भाषा तथा ब्राह्मी लिपि है वे भाषार्य हैं। (७) ज्ञानार्य- पाँच ज्ञानों में किसी ज्ञान को धारण करने वाले ज्ञानार्य हैं। (८) दर्शनार्य- सरागदर्शनार्य और वीतरागदर्शनार्य को दर्शनार्य कहते हैं । सरागदर्शनार्य दस प्रकार के हैं, वे दसवें बोल में दिये जायेंगे। वीतरागदर्शनार्य दो प्रकार के हैं- उपशान्त कषाय वीतरागदर्शनार्य और क्षीणकषाय वीतरागदर्शनार्य। (8) चारित्रार्य- पाँच प्रकार के चारित्र में से किसी चारित्र को धारण करने वाले चारित्रार्य कहे जाते हैं।
(पन्नवणा पद १ सूत्र ६५.७६) ६५४- चक्रवर्ती की महानिधियाँ नौ
चक्रवर्ती के विशाल निधान अर्थात् खजाने को महानिधि कहते हैं। प्रत्येक निधान नौ योजन विस्तार वाला होता है। चक्रवर्ती की सारी सम्पत्ति इन नौ निधानों में विभक्त है। ये सभी निधान देवता के द्वारा अधिष्ठित होते हैं। वे इस प्रकार हैं
नेसप्पे पंडयए पिंगलते सव्वरयण महापउमे। काले य महाकाले माणवग महानिही संखे ।।
अर्थात्- (१) नैसर्प (२) पाण्डुक (३) पिङ्गल (४) सर्वरत्र (५) महापद्म (६) काल (७) महाकाल (८) माणवक (8) शंख ये नौ महानिधियाँ हैं। (१) नैसर्प निधि- नए ग्रामों का बसाना, पुराने ग्रामों को
व्यवस्थित करना, जहाँ नमक आदि उत्पन्न होते हैं ऐसे समुद्र तट ' या दूसरे प्रकार की खानों का प्रबन्ध, नगर, पत्तन अर्थात्