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श्री.जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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६५१-- बलदेव और वासुदेवों के पूर्वभव के ___ प्राचार्यों के नाम
(१) सम्भूत (२)सुभद्र (३) सुदर्शन (४) श्रेयांस (५) कृष्ण (६) गंगदत्त (७) अासागर (८) समुद्र (8) द्रुमसेन ।
पूर्वभव में बलदेव और वासुदेवों के ये आचार्य थे। इन्हीं के पास उत्तम करनी करके इन्हों ने बलदेव या वासुदेव का आयुष्य बाँधा था।
( समवायांग १५८) ६५२ - नारद नौ । प्रत्येक उत्सर्पिणी तथा अवसर्पिणी में नौ नारद होते हैं। वे पहले मिथ्यात्वी तथा बाद में सम्यक्त्वी हो जाते हैं। सभी मोक्ष या स्वर्ग में जाते हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं
(१) भीम (२) महाभीम (३) रुद्र (४) महारुद्र (५) काल (६) महाकाल (७) चतुर्मुख (८) नवमुख (६) उन्मुख ।
(ऋषिमण्डल वृत्ति ) ( सेनप्रश्न उल्लास ३ प्रश्न ६६ ) ६५३- अनुद्धिप्राप्त आर्य के नौ भेद ____ अरिहन्त, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, चारण या विद्याधर की ऋद्धि से रहित आर्य को अनृद्धिमाप्त आर्य कहते हैं। इन के नौ भेद हैं -- (१) क्षेत्रार्य- आर्यक्षेत्रों में उत्पन्न हुआ व्यक्ति । साढ़े पच्चीस
आर्यक्षेत्रों का वर्णन पच्चीसवें बोल संग्रह के अन्त में दिया जायगा। (२) जाति आर्य-अंबष्ठ, कलिंद, विदेह, वेदग, हरित और चंचुण इन छः आर्य जातियों में उत्पन्न हुआ व्यक्ति। (३) कुलार्य- उग्र, भोग, राजन्य, इक्ष्वाकु, ज्ञात और कौरव्य इन छ: कुलों में उत्पन्न हुआ व्यक्ति। (४) कार्य-हिंसा आदि क्रूर कर्म नहीं करने वाला व्यक्ति।