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को सेठिया जैन ग्रन्थमाला
कहलाते हैं । अनुपवाद नाम के नवम पूर्व में नैपुणिक वस्तुओं के नौ अध्ययन हैं। वे नीचे लिखे जाते हैं(१) संख्यान- गणित शास्त्र में निपुण व्यक्ति । (२) निमित्त- चूडामणि वगैरह निमित्तों का जानकार । (३) कायिक- शरीर की इडा, पिंगला वगैरह नाडियों को जानने वाला प्रथोत् प्राणतत्त्व का विद्वान् । (४) पुराण- वृद्ध व्यक्ति, जिसने दुनियाँ को देखकर तथा वयं अनुभव करके बहुत ज्ञान प्राप्त किया है, अथवा पुराण नाम के शाख को जानने वाला। (५) पारिहस्तिक- जो व्यक्ति स्वभाव से निपुण अर्थात् होशियार हो । अपने सब प्रयोजन समय पर पूरे कर लेता हो। (६)परपण्डित- उत्कृष्ट पण्डित अर्थात् बहुत शास्त्रों को जानने बाला, अथवा जिसका मित्र वगैरह कोई पण्डित हो और उसके पास बैठने उठने से बहुत कुछ सीस्व गया हो और अनुभव कर लिया हो। (७) वादी-शास्त्रार्थ में निपुण जिसे दूसरा न जीत सकता हो, अथवा मन्त्रवादी या धातुवादी। (८) भूतिकर्म- ज्वरादि उतारने के लिए भभूत वगैरह मन्त्रित करके देने में निपुण। (६) चैकित्सिक- वैद्य, चिकित्सा में निपुण । (ठाणांग, सूत्र ६७६) ६४३- पाप श्रत नौ
जिस शास्त्र के पठन पाठन और विस्तार आदि से पाप होता है उसे पाप श्रुत कहते हैं। पाप श्रुत नौ हैं(१) उत्पात- प्रकृति के विकार अथात् रक्त दृष्टि आदि या राष्ट्र के उत्पात आदि को बताने वाला शास्त्र । (२) निमित्त-भूत, भविष्यत् की बात को बताने वाला शास्त्र।