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मो अनसिशन्स पोम संग्रह
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(४) खेदा अथवा क्षेत्रज्ञ-- अभ्यास के द्वारा प्रत्येक कार्य के अनुभव वाला, अथवा संसारचक्र में घूमने से होने वाले खेद (कष्ट) को जानने वाला । जैसे--
जरामरणदौर्गत्यव्याधयस्तावदासताम् । मन्ये जन्मैव धीरस्य, भूयो भूयस्त्रपाकरम् ॥ अर्थात्- जरा, मरण, नरक, तिर्यश्च आदि दुर्गतियों तथा व्याधियों को न गिना जाय तो भी धीर पुरुष के लिए बार बार जन्म होना ही लज्जा की बात है। ___ अथवा क्षेत्र अर्थात संसक्त आदि द्रव्य तथा भिक्षा के लिए छोड़ने योग्य कुलों को जानने वाला साधु । (५) क्षण-क्षण अर्थात् भिक्षा के लिये उचित समय को जानने वाला क्षणज्ञ कहलाता है। (६) विनयज्ञ-- ज्ञान, दर्शन आदि की भक्ति रूप विनय को जानने वाला विनयज्ञ कहलाता है । (७) स्वसमयज्ञ - अपने सिद्धान्त तथा प्राचार को जानने वाला अथवा उद्गम आदि भित्ता के दोषों को समझने वाला साधु । ( 2 ) परसमयज्ञ-- दूसरे के सिद्धान्त को समझने वाला । जो आवश्यकता पड़ने पर दूसरे सिद्धान्तों की अपेक्षा अपने सिद्धान्त की विशेषताओं को बता सके। (६) भावज्ञ-दाता और श्रोता के अभिप्राय को समझने वाला। ___ इस प्रकार नौ बातों का जानकार साधुसंयम के लिए अतिरिक्त उपकरणादि को नहीं लेता हुआ तथा जिस काल में जो करने योग्य हो उसे करता हुआ विचरे।
_ (भाचारांग भुतस्कन्ध १ अध्य० २ उद्दशा ५, सूत्र ८६) ६४२- नैपुणिक नौ .. निपुण अर्थात् सूक्ष्म ज्ञान को धारण करने वाले नैपुणिक