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श्रीजैन सिद्धान्त बोल संग्रह
(३) मन्त्र-दूसरे को मारना, वश में कर लेना आदि मन्त्रों को बताने वाला शाख। (४) माताविधा- जिस के उपदेश से भोपा आदि के द्वारा भूत तथा भविष्यत् की बातें बताई जाती हैं। (५) चैकित्सिक- आयुर्वेद । (६) कला- लेख आदि जिन में गणित प्रधान है। अथवा पक्षियों के शब्द का ज्ञान आदि । पुरुष की बहत्तर तथा स्त्री की चौंसठ फलाएं। (७) आवरण-- मकान वगैरह बनाने की वास्तु विद्या। (८) अज्ञान-लौकिक ग्रन्थ भरत नाट्य शास्त्र और काव्य वगैरह। (६) मिथ्या प्रवचन- चार्वाक आदि दर्शन ।
येसभी पाप श्रुत हैं,किन्तु येही धर्म पर दृढ व्यक्ति के द्वारा यदि लोकहित की भावना से जाने जावें या काम में लाये जावें तो पाप श्रुत नहीं हैं। जब इनके द्वारा वासनापूर्ति या दूसरे को नुक्सान पहुँचाया जाता है तभी पाए श्रुत हैं। (ठाणांग, सूत्र ६७८ । ६४४ निदान (नियाणा) नौ
मोहनीय कर्म के उदय से काम भोगों की इच्छा होने पर साधु, साध्वी, श्रावक या श्राविका का अपने चित्त में संकल्प कर लेना कि मेरी तपस्या से मुझे अमुक फल प्राप्त हो, इसे निदान (नियाणा) कहते हैं।
एक समय राजगृही नगरी में भगवान महावीर पधारे। श्रेणिक राजा तथा चेलना रानी बड़े समारोह के साथ भगवान् को वन्दना करने गए । राजा की समृद्धि को देख कर कुछ साधुओं ने मन में सोचा, कौन जानता है देवलोक कैसा है । श्रेणिक राजा सब तरह से मुखी है। देवलोक इससे बढ़कर नहीं हो सकता । उन्होंने मन में निश्चय किया कि हमारी तपस्या का