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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
तपस्या करके धैर्य रखना, प्रार्तध्यान न करना तया शत्र के विनाश में पराक्रम दिखाना श्रादि चिह्नों से वीर रस जाना जाता है अर्थात् वीर पुरुष दान देने के बाद घमण्ड या पश्चात्ताप नहीं करता, तपस्या करके धैर्य रखता है, आर्तध्यान नहीं करता तथा युद्ध में शत्रु का नाश करने के लिए पराक्रम दिखाता है। वीर पुरुष के इन गुणों का वर्णन काव्य में वीर रस है। जैसे-- सो नाम महावीरो जोरज्जंपयहिऊण पवइयो।
कामकोहमहासत्तूपक्खनिग्घायणं कुणई ॥ अर्थात्- वही महावीर है जिसने राज्य छोड़ कर दीक्षा ले ली। जोकाम, क्रोध रूपी महाशत्रुओं की सेना का संहार कर रहा है। (२) शृङ्गार रस- जिस से कामविकार उत्पन्न हो उसे शृङ्गार रस कहते हैं। स्त्रियों के शृङ्गार, उनके हावभाव, हास्य, विविध चेष्टाओं आदि का वर्णन काव्य में शृङ्गार रस है। जैसे-- महुरविलाससलिलअं, हियउम्मादणकरं जुवाणाएं। सामा सद्दाम, दाएती मेहलादामं ॥
अर्थात्- मनोहर विलास और चेष्टाओं के साथ, जवानों के हृदय में उन्माद करने वाले, किंकिणी शब्द करते हुए मेखलामूत्र को श्यामा स्त्री दिखाती है। (३) अद्भुत रस- किसी विचित्र वस्तु के देखने पर हृदय में जो आश्चर्य उत्पन्न होता है उसे अद्भुत रस कहते हैं। यह पहले बिना अनुभव की हुई वस्तु मे अथवा अनुभव की हुई वस्तु से होता है। उस वस्तु के शुभ होने से हर्ष होता है, अशुभ होने से दुःख होता है । जैसे
भन्भुतरमिह एत्तो भन्ने किं अस्थि जीवलोगम्मि। जं जिणवयणे अत्था तिकालजुत्ता मुणिज्जति॥ अर्थात्-संसार में जिनवचन से बढ़कर कौनसी विचित्र वस्तु